SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४. सेवा और परस्पर सहयोग का भाव । ५. विकृति की भावनाओं के स्थान पर सुकृति के भावो की विषय । नव-निर्माण के चार पथ जागरण । आव्यात्मिक शक्ति के सहारे क्या हो सकता है ? १. आध्यात्मिक मान्यताओं की शक्ति समान की भौतिक प्रवृत्तियों पर अधिकार पाकर मानव समाज को मुन्नी और समृद्ध बना सकती हैं । २. अनेक परिवर्तनो के बावजूद प्राध्यात्मिक भावनाएं युगों तक अपनी प्रभुता कायम रख कर मनुष्य को विवेकशील और निष्ठावान बना सकती हैं । ३. सादा जीवन और नैतिकता मनुष्य को समस्त क्षेत्र स्वार्थों से ऊपर उठाकर राष्ट्र और समान के लिए अधिक से अधिक उपयोगी बना सकता है। ४. करुणा, सहिष्णुता तथा समस्त जीवों पर दयाभाव मनुष्य को दंग और समाज के लिए रचनात्मक कार्यों की ओर प्रवृत्त कर सकता है। ५. कर्त्तव्यपरायण, निष्ठावान, विवेकशील और आध्यात्मिक भावनाओं से युक्त मानव से ही अहिंसात्मक और सहयोगी समाज की स्थापना हो सकती है। क्या नही हो सकता ? १. परम्परा के सम्पूर्ण विनाश से नवनिर्माण नही हो सकता । २. क्षुद्र ग्रह और स्वार्थी के संघ में मुखी और समृद्ध समाज की स्थापना नहीं हो सकती । १. दैनिक जीवन में अपने-अपने अहंकार की संतुष्टि के लिए स्वार्थ के संघर्ष का अन्त। २. सात्विक प्रवृत्तियों के प्रस्फुरण के लिए सहयोगमूलक अयं व्यवस्था की स्थापना । ३. सत्ता के स्थान पर सेवा का मार्ग । ४. शुद्ध और सात्विक जीवन और विचारों द्वारा परस्पर सहयोग तथा सेवाभाव का ३. भौतिकवाद मनुष्य को रचनात्मक कार्य की ओर प्रवृत्त नहीं कर सकता । ८. विज्ञान की टी हुई क्रूरता मनुष्य को परस्पर सेवा तथा सहयोग के मार्ग पर नहीं ले जा सकती । ५. करुणा और सहिष्णुता के अभाव में एक मुखी और समृद्ध समाज की स्थापना नहीं हो सकती । क्या हो सकता है ? १. वाघ्यात्मिक अथवा वैचारिक स्थिर मूल्यों की शक्ति समाज को भौतिक प्रवृति पर अधिकार पाकर मानव समाज को सुखी और समृद्ध बना सकती है । २. अनेक परिवर्तनों के बावजूद आध्यात्मिक मान्यताएं युगों तक अपनी प्रभुता कायम रख कर मनुष्य की विवेकशील और निष्ठावान बना सकती हैं | 0 ❤ १२]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy