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________________ एक शिला के ऊपर अकित मिलते है, जिनका स्पर्श आज भी धर्मप्राण हिन्दुओ मे कल्याणदायक माना जाता है । इसी स्थान पर एक वृहदाकार घण्टा लटकता है जिसका रव मीलो तक प्रावू की पर्वतश्रेणियो में गूजता है। रसियाबालम कुमारी कन्या ____ यह प्रसिद्ध ऐतिहासिक मन्दिर जैन मन्दिरो के पार्श्व मे है। इसमे श्रीमाता, गणपति, महादेव और शेषशायी विष्णु भगवान के भी मन्दिर है। अम्बिकादेवी का मन्दिर ___ अम्बिकादेवी का मन्दिर अति प्राचीन गुफा मे है। कुछ यात्रीगण इन्हे अधरदेवी भी कहते है क्योकि इस मन्दिर तक ४५० सीढियां चढ़ने के बाद पहुंचना होता है। पार्श्व मे महादेवजी का भी मन्दिर है। इसी प्रकार आबू पर्वत पर पापकटेश्वर महादेव, नखीतालाव, रघुनाथजी का मन्दिर, दुलेश्वरजी का मन्दिर, ज्वालादेवी, भद्रकाली, हृषिकेश आदि देवी-देवताओ के कितने ही देवीमन्दिर, देवालय तथा देवगुफाएं है। इसके अलावा तीर्थ-सरोवर, रामझरोखा, ऋषियो और तपस्वियो के आश्रम तथा गुफायें प्राकृतिक सौन्दर्य और धार्मिक दृष्टि से दर्शनीय है। साराश यह कि श्रावू पर्वत की भूमि का चप्पा-चप्पा देवताओ और ऋपियो की महिमा एवं धार्मिक वैभव से भरा पड़ा है । इसलिए हरएक धर्मप्रेमी हिन्दू पाबू तीर्थ मे अपने को पाकर कृतार्थ समझता है । जैन मन्दिरो मे धार्मिक कला-शिल्प ___कलादर्शन की दृष्टि से तो जैन मन्दिर अपनी उत्कृष्टता के लिए विश्वविख्यात है ही, जिनके अतिसूक्ष्म और कलापूर्ण शिल्प को देखकर विदेशी निर्माण-कला विशारद भी पाश्चर्यचकित रह जाते है, जिसकी सगमर्मर की कला की तुलना पर केवल ताजमहल ही आ सकता है । लेकिन कुछ बातो मे विशेपज्ञो ने इसे ताजमहल से भी बढकर बतलाया है। फिर इनकी धातुकला तो अद्वितीय है । इन मन्दिरो मे केवल जैन सस्कृति और जैन धर्म का ही चित्रण नही है, वरन् एक ऐतिहासिक युग की वेष-मूपा, रीति-रिवाज और अजन्ता तथा एल्लोरा की गुफाओ के समान भावविन्यास और नाट्यकला का सागोपाग चित्रण भी कलाशिल्प और पच्चीकारी मे देखने को मिलता है । मन्दिरो के विभिन्न चित्रलेखो मे हिन्दू दर्शको को हिन्दू-धर्म और संस्कृति की झलक भी देखने को मिलेगी, जिन्हे कि उन कुशल कलाशिल्पियो ने चित्रित किया है। श्रीकृष्ण भगवान के चरित्र और नरसिंह अवतार की कथाये इन मन्दिरो मै वडी सुन्दरता के साथ अकित की गई हैं। जिनकी कलापूर्णता देख वरवस मुग्ध होकर रह जाना पड़ता है। कला और अध्ययन की दृष्टि से तो इन मन्दिरो की कला का अध्ययन महीनो मे भी पूर्ण नही हो सकता । जैन महामन्त्री विमलशाह और वस्तुपाल तेजपाल, आबू सरीखे पर्वत-शिखर पर अपनी धार्मिक महत्वकाक्षा, पराक्रम और वैभव के प्रतिरूप मे १६ करोड की धनराशि लगाकर इन अमर-चिन्हो का निर्माण कर गए है और हिन्दू-धर्म के प्रति उनको कैसी रुचि थी उसका भी परिचय वे देने से नहीं चूके । ऐसा है पाबू त हिन्दू-धर्म और संस्कृति का पुण्य प्रतीक । २७४ ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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