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जैनियो के मन्दिरो की शिल्पाला और धातुकला की छाप लगी दिखाई देती है । इस दृष्टि से आबू के हिन्दू-मन्दिरो मे जैसी धातु और पापाण की विशाल मूर्तियां है, वैसी भारत के शायद ही और किन्ही मन्दिरो मे पाई जाती हो। प्रमुख हिन्दू मन्दिर
अचलेश्वर महादेवजी का मन्दिर आबू का सबसे प्राचीन मन्दिर माना जाता है क्योकि आबू पर्वत के मधिष्ठाता देव, अचलेश्वर महादेवजी ही है। माबू के परमार भासक इन्हें अपना कुलदेवता मानते थे 1 वाद मे जव चौहानो का राज्य प्रावू पर हुआ तो वे भी इन्हे अपना कुलदेव मानने लगे। इस मन्दिर मे शिवलिंग नहीं, वरन् शिवजी के चरण का अंगूठा ही पूजा जाता है। मन्दिरो मे जो जिलहरी है, उसमे शिवजी के चरण का अगूठा ही स्थापित है। सामने दीवार में पार्वतीजी और पार्श्व मै ऋपियो और राजामो की मूर्तिया है। इसके गूढ़-मण्डप से अलग एक शिवलिंग पट है, जिसमे १०८ शिवलिंग बनाये गए है। इस मन्दिर का कई राजानो ने अपने-अपने समय में जीर्णोद्धार कराया और मूर्तियां भी स्थापित की। इसके जीणोद्वार का सदसे प्राचीन उल्लेख सवत १३४३ मे मिलता है। उस समय मेवाड़ के महारावल समरसिंह ने मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाकर इन पर मोने का ध्वजदड चढाया और उनके शिलालेख में तपस्वियो के लिए भोजन और निवास की व्यवस्था कराने का भी उल्लेख मिलता है । मन्दिर के सामने नदीभगवान की एक विशालकाय पीतल की मूर्ति है, जिसकी पीठ पर खुदे हुए लेख के अनुसार वह स० १४६४ की बनी हुई मालूम होती है। मन्दिर की देहरी के बाहर बातु का एक त्रिमूल है, जिमे राणा लाखा, ठाकुर माडण और कुवर भादा ने सम्मिलित रूप से बनवाकर स्थापित कराया था। शकरजी का इतना विशाल त्रिशूल भारत के और क्सिी शिवालय में देखने को नहीं मिलता।
अचलेश्वर महादेवजी के मन्दिर के महाते मे और भी अनेक छोटे-छोटे हिन्दू मन्दिर है। इसी मन्दिर की वगल मे पवित्र मन्दाकिनी-फुड है, जो १०० फुट लम्बा और २४० फुट चौड़ा है । इतने विशाल कुड भारत में विरले ही देखने को मिलते है । कुण्ड के समीप ही परमार राजा धारावर्प की शक्ति के चिन्ह धनुप और पत्थर के तीन भैसे स्थापित है, जिन्हें वह एक ही वाण से वेध सकता था। मदाक्निी -कुण्ड के समीप ही सारणेश्वर महादेव के भी दर्शन होते हैं। इस मन्दिर में महाराव मानसिंह की पांचो रानियो सहित मूर्तिया स्थापित है, जिनमें वे शिवजी की आराधना करते हुए दिखाये गए हैं। कहा जाता है ये पाचो रानिग मृत्यु के पश्चात् राजा मानसिंह के साथ सती हुई थी। मन्दिर के आसपास ही भर्तृहरि-गुफा, रेवती-चुप्ड और मुगुभाश्रम दर्शनीय स्थान है। गुरुशिखर
ओरिया से वायव्य कोण मे गुरुशिखर आबू का सर्वोच्च अग है, जिसकी ऊँचाई समुद्र की सतह से ५६५० पुट है । परिश्रम की चढ़ाई के पदचात् उस निखर पर गुरु दत्रात्रेय के चरण
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