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ऐतिहासिक काल में बू
इसमे कोई सन्देह नही कि जहां भाव के एकान्त गिरि-कन्दराओ मे तपस्वी ईश्वरचिन्तन मे लीन रहते होगे, वहाँ इन क्षत्रिय नरेशो की सुन्दरी राजमहिपियाँ आवू के सरोवरो मे लहरो के साथ जल क्रीडा करती रही होगी, उनके नूपुरो की झकार और वसन्त के गीतो से, श्रावू के वनपथ और लताकु ज सगीतमय हो उठते होगे। उनके केशो और अगो से उठती हुई सुगन्ध से श्राव का वसन्त पवन गन्धमय रहता होगा | महारावल समरसिंह, महाराव लुभा, महाराजा तेजसंह, राणा लाखा और कु भा सरीखे प्रतापी नरेशो की वीर पत्नियाँ यहाँ अहर्निश विहार करती थी । उस समय भावू पर्वत स्वर्गभूमि था और नरेश इसी मे इन्द्र के नन्दनवन की कल्पना करते थे ।
लेकिन उस समय इस नन्दनवन तक पहुंचना कितना दुर्गम और साहस का काम था, उसकी कल्पना आज हम नही कर सकते । श्राबू के पर्वत शिखरों को दूर से देख लेना आसान था, लेकिन उन तक पहुँचकर वहाँ के नैसर्गिक सौन्दर्य का आनन्द प्राप्त करना दुर्लभ था। तभी तो ऐतिहासिक चिन्हो की खोज में भटकने वाले प्रसिद्ध ऐतिहासवेत्ता कर्नल टाड ने जब आबू को कठिन चढाइयो और दुर्गमताभ को पार कर आबू की प्रथम झलक पाई, तो लिखा है
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"It was nearly noon, when I cleared the path of Sitla Mata, and as the bluff head of mount Abu opend upon me, my heart beat with joy, as with the sage of Syracaus I exclaimed, "Eureka" अर्थात् "मध्याह्न के लगभग जव मैं शीतला माता के घाट से चला, और जब प्राबू के उच्च शिखर मेरे नेत्रो के सामने दृष्टिगोचर हुए, तो मेरा हृदय प्रसन्नता ने नाच उठा और सिराक्युस ऋषि के शब्दो मे मैंने हर्षातिरेक से दुहराया 'यूरेका' (जिसे खोजता था, उसे पा लिया) ।”
ऐसे थे आबू के दुर्गम पथ और उनकी बीहडता, जिन्हें पार कर किसी की खुशी का वारापार न रहता था । लेकिन उस व्यक्ति की कहानी प्रावृ के इतिहास से सम्बन्धित एक अमर प्रेम-कथा है, जिसे कर्नल टाड से पहले शायद प्रथम बार आबू पर चढने-उतरने के लिए १२ मार्ग बनाए । सम्भव है उसी के बनाए हुए मार्ग से चढकर कर्नल टाड बाबू की उच्चसम भूमि पर पहुँचे होगे । वह व्यक्ति रसियाबालम के नाम से विख्यात तात्रिक था और आबू की राजकन्या से प्रेम करता था । उसने चाहा कि राजकन्या के माता-पिता उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दें। लेकिन राजा और रानी किसी प्रकार भी राजकन्या का विवाह रसियावालम के साथ नही करना चाहते थे । रसियावालम की निरन्तर प्रेरणाओ और प्रार्थनाओ से आखिर राजा इस गतं पर राजकन्या का विवाह करने के लिए तैयार हो गए कि वह सूर्यास्त के पश्चात्, प्रात मुर्गा बोलने से पूर्व ही, एक रात मे आबू पर चढने उतरने के लिए बारह मार्ग बना दे । राजा यह कार्य रसियाबालम की शक्ति से बाहर समझते थे लेकिन रसियाबालम ने राजा की शर्त स्वीकार
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