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महाजनो येन गत स पन्थां अर्थात् महाजन जिस मार्ग से जाते है वही मार्ग ठीक है । उन्हें सब अपना पथप्रदर्शक समझते थे । पशुपालन, कृपि, लेन-देन और व्यापार-यह चार उनके धन्धे थे। पशुपालन और कृपि इन दोनो धन्धो की तो वागडोर इन अग्रवालो के ही हाथ में थी। उन दिनो चान्दी और सोने की वजाय पशुधन सबसे उत्तम माना जाता था। एक-एक महाजन के पाम ५०-५० हजार, ६०-६० हजार गाय-भैसे आदि दूध देने वाले पशु होते थे। वह लाखो बीघे जमीन के स्वामी होते थे । विशेपतया हमारा हरियाना प्रात तो दूध और घी के लिये देश भर में विख्यात था। इस प्रान्त मे दूध की नदिया वहती थी।
उस समय मे आपस मे इतना प्रेम था कि कोई भाई अपने आपको गरीव नहीं समझता था । इतना भ्रातृभाव था कि यदि कोई भाई नुकसान मे तथा किसी आपत्ति मे आ जाता था
और वह अगरोहे मे आ गया है तो प्रत्येक अग्रवाल उसको एक ईट और एक रुपया देकर अपने समान बना लेते थे । आपस मे बहुत सहानुभूति थी। देवियो का बना मान था और यदि कोई भाई किसी के द्वार पर अपनी लडकी का रिश्ता लेकर चला गया है तो लड के वाला भाई उसको अपना गौरव समझता था और सौभाग्य समझता था कि लक्ष्मी आ गई और पल्ला पसार कर कन्या का रिश्ता स्वीकार लेता था।
इस समय हमारी जाति की दशा बड़ी शोचनीय है । अग्रवालो के सामने अव जीवनमरण का प्रश्न उपस्थित हो गया है । हमारे भाइयो का पशुपालन और कृषि से ध्यान जाता रहा । लेन-देन और वाणिज्य भी एक प्रकार से सरकार के नए कानूनो के कारण नष्ट हो गया है। अब तो हमे सगठित होकर अपनी इस शोचनीय दशा पर विचार करना ही होगा कि हम किस प्रकार जीवित रह सकते है ?
अग्रवाल समाज मे शिक्षा की बहुत हो कमी है । वीसवी शताब्दी शिक्षा और सभ्यता का युग कहलाता है लेकिन हमारे अग्रवाल समाज मे अव भी शिक्षा का बहुत कम प्रचार है । आश्चर्य की बात है कि देश मे अव शिक्षा प्रदान करने वाली जितनी सस्थाए है वे अधिकतर हमारे ही जाति भाइयो के रुपयो से चलती है तो भी हम लोगो के वालको और नवयुवको की भारी सत्या शिक्षणालयो से पूरा लाभ नहीं उठाती। प्रत्येक देश और जाति की उन्नति शिक्षा पर ही निर्भर है। हमारी शिक्षा का प्रादर्श यही होना चाहिये कि हमारे नवयुवको का जीवन सादा और उनके विचार उच्च हो। अपने देश, अपने धर्म और अपनी जाति के लिए उनको अपने कर्तव्य का ज्ञान हो । शिक्षा के अभाव के कारण हमारे घरो तथा हमारी जाति मे सरहतरह की कुरीतिया फैली हुई है जो दिन पर दिन हमारे पतन का कारण बन रही है।
पाज हमारी जाति के नवयुवको के सामने रोटी और कपडे का सवाल है । दूसरी जातिया हमारी जाति को धनाढ्य समझते हुए हम पर ईयां करती है । किन्तु हमारे नवयुवको के अन्दर वेरोजगारी निरन्तर वटती जा रही है। बहुत ने अग्रवाल परिवार जिनके रात-दिन सदावत चलते थे, जो सैकडो गरीबो को गर्मी सर्दी से बचने के लिये क्पडा दिया करते थे उन
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