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दिलेर और अदम्य साहसी
श्री लालचन्द जैन एडवोकेट, रोहतक
भूतपूर्व अध्यक्ष भा० दि० जैन परिषद् स्वर्गीय तनसुखरायजी एक साहसी और धैर्यवान व्यक्ति थे। पहले-पहल मुझे उनके साहस का परिचय असहयोग आन्दोलन के समय हुआ, जब वे गिरफ्तार किए जाकर अदालत मे लाये गये, और उनके रिश्तेदार इस सवध मे मुझे अदालत में ले गये।
उनके भाई गनपतरायजी का झुकाव तो जन-समाज की कुरीतियां दूर करने के लिये बहुत था और उनसे काफी बातचीत होती थी। तनसुखराय जी पहले-पहल हमारे रोहतक के साथियो के साथ परिषद् अधिवेशन सहारनपुर मे गये और परिपद् के कार्य से बहुत प्रभावित हुए।
यह उनकी ही हिम्मत थी कि दिल्ली में परिषद् का अधिवेशन हुआ, तब उनका जोश, उत्साह, लगन और उनके काम करने की शक्ति पूरी तरह रोशनी मे आई।
उसी समय महगांव काड का आदोलन हुआ, तब तनसुखरायजी ने बहुत सहनशीलता और दिलेरी से काम लिया। इस मौके पर भी उनका साहस मैने एक बार फिर देखा जब कि मैं और वे ग्वालियर गये और रियासत के उच्चतम अधिकारी से मिले, जिनके गुस्से का पार न पाया यहाँ तक कि उन्होने गिरफ्तार करने की धमकी भी दी।
परिपद के सतना अधिवेशन मे उन्होने जिस हार्दिक लगन से काम किया और उसके बाद एक साल तक जिस तरह उन्होंने मुझे सहयोग दिया और मेरी इच्छानुसार परिपद दिवस मनाकर दस हजार से अधिक मेम्बर बनाये, वीर सेवा सघ जगह-जगह स्थापित किये, और मेरे साथ घूमकर मेरे लिए जो जो प्रवध उन्होने किये, और जो जो सहूलियते मुझे दी इन सब का मेरे लिये भूलना कठिन है। मैं उनका प्रति आभारी हूँ।
श्री वीर प्रमु से प्रार्थना है कि उनकी असीम कृपा से स्वर्गीय आत्मा को सुगति, शांति, सुख और आनद प्राप्त हो।