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________________ के कारण हम उचित सफलता प्राप्त नही कर सके है । यदि सामूहिक शक्ति के बल पर व्यवस्थित रूप से उक्त कार्य करे तो निश्चय ही जैनधर्म का दिन दुगना रात चौगुना प्रचार हो सकता है। यह जमाना व्याख्यानो का नही है कुछ कर गुजरने का है, इसलिये मै चन्द शब्दो मे अपने मनोभाव आपके सामने रख कर बैठ रहा हूँ । अब आप यह निर्णय कीजिये कि जैनधर्म की उन्नति के लिये कौन-कौन सी बाते आवश्यक है । केवल निर्णय हो न कीजिये बल्कि उसे अमली जामा पहनाने की भी योजना बनाइये और उसमे जो सेवा आप मेरे योग्य समझे मुझे दीजिये और जो कार्य प्राप कर सके उसकी जिम्मेदारी प्राप भी सहर्ष लीजिये, मेरा यही आप से अनुरोध है । लालाजी का परोपकारी कार्य उद्योगशाला व्र० सीतलप्रसादजी ता०८ को देहली मे आकर तिलक इश्योरेन्स कम्पनी नई देहली मे लाला तनसुखरायजी के पास ठहरे। लाला जौहरीमलजी व पन्नालालजी मिले। दोनो बडे मिलनसार सज्जन है। लाला तनसुखरायजी की तरफ से भोजन व निवासस्थान पाते हुए १० छात्र उद्योग-धन्धा सीखते हैं, उनके नामादि इस प्रकार है- १-- करतूरचन्द परवार --- दमोह ( २० ) हिन्दी मिडिल पासव - कॉमर्शियल प्रेस मे कम्पोजिंग कार्य सीखते है । २ - लक्ष्मीचन्द परवार - बीना (२०) विशारद प० ख० -- उद्योगशाला मे टेलरिंग कार्य सीखते है । ३ – स्वरूप चन्द जैन परवार - खुरई (१८) प्रवेशिका तृ० - टेलरिंग । ४ --- फूलचन्द कठनेरा - सिरोज (१८) हिन्दी इग्लिश छठी - टेलरिंग । ५ - फुलचन्द ए० परवार - लागौन (१९) शास्त्री प्र० ख० - टेलरिंग । ६ -- छोटेलाल गोलापूर्व - दमोह (२०) विशारद द्वि० - टेलरिंग । ७--- कामताप्रसाद परवार - दमोह (२२) शास्त्री प्र० ख० - टेलरिंग । ८- बाबूराव जैन परवार- मुगावली (१९) मैट्रिक – टाइपराइटिंग शोर्ट राइटिंग | E---गुट्टू लाल परवार भोपाल ( १७ ) हिन्दी पाचवी - घडीसाजी | १०- उदयचन्द परवार – खिमलासा ( २० ) विशारद तृ०, आयुर्वेदाध्ययन । इन छात्रो को एकत्र कर रात्रि को धर्मोपदेश दिया व यह सूचना दी कि इन सब छात्रो को नियम से किसी धर्मशास्त्र मे वार्षिक परीक्षा देनी चाहिए व नाठवे दिन सभा करके भाषण देना सीखना चाहिए । लालाजी का यह परोपकार सराहनीय है । बा० अयोध्याप्रसादजी गोलीय ने प्रेरणा की कि वे साप्ताहिक सभा व धार्मिक परीक्षा का नियम करावे । परिषद का दफ्तर देखा । अभी तक करीब ५००० सभासद हुए है तो भी फीस की रकम ३५० ) के करीब आई है । उद्योगशाला का कार्य प्रशसनीय है । २५६ ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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