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उत्साह, आत्म-विश्वास और कार्य शक्ति की मेरे पास कमी नही है । जो सेवा आप मेरे सुपुर्द करेंगे उसे बजा लाने मे मै अपना गौरव समझ गा ।
जिस रोज वीर प्रभु ने सतप्त ससार मे उपदेशामृत की वर्षा की थी। आज उसी मुबारिक दिन पर इकट्ठे होकर हमे विचार परामर्श करने का सौभाग्य प्राप्त हुप्रा है, ससार के कल्याण के लिये वीर प्रभु ने जो दिव्य उपदेश दिया था, उसका प्रसार साहित्य, उपदेशो और रात्रि-पाठशालाओ द्वारा किया जा सकता है ।
युग मे नवीन ढंग से
१ - साहित्य देश और समाज के पीठ की रीढ की हड्डी है । जिस समाज का साहित्य जितना अधिक विकसित, अनुपम और विशाल होगा, वह समाज भी उतना ही उन्नत होगा । हमारे पूर्व प्राचार्यो और विद्वानो ने साहित्य निर्माण मे काफी मफलता प्राप्त की है । हमारे भण्डारो मे मोतियो से तोले जाने योग्य ग्रथ भरे पडे हैं । हमे अब इस नये अपने साहित्य को प्रकाश मे लाने की आवश्यकता है । प्रत्येक भाषा मे आधुनिक लेखन और प्रकाशन कला से परिपूर्ण साधारण से लेकर उच्च कोटि के विद्वानों तक उनकी बुद्धि और विषय के अनुसार हमारा साहित्य पहुंचना चाहिये । अर्थात् जो पत्र-पत्रिकाओ को चाव से पढ़ते है उनके लिये हमे साहित्यिक पत्र प्रकाशित करने चाहिये । और जो साधारण पढे-लिखे है उनके लिये छोटेछोटे सरल भाषा मे ट्रेक्ट छपाने चाहिये । और जो अव्ययनशील विद्वान् है, उनके योग्य खोज और मनपूर्वक लिखे हुए ग्रंथो का प्रबन्ध करना चाहिये ।
यद्यपि इसके लिये हमारे समाज की कई महान् आत्माये और सस्थाये प्रयत्नशील है किन्तु उचित प्रोत्साहन, सहयोग और सामूहिक शक्ति के प्रभाव के कारण जमा चाहिये वैसा कार्य नही हो रहा है। वीर सेवा मन्दिर का भी इसी लिये जन्म हुआ है, और हर्ष है कि समाज के प्रसिद्ध विद्वान् १० जुगलकिशोरजी ने इसके लिये अपना तन, मन, धन सब कुछ समर्पित कर दिया है। यदि समाज इस सस्था को अपना सहयोग पूर्णरूपेण प्रदान करे, तो यह साहित्य - निर्माण की वेजोड़ सस्था बन सकती है ।
२ - जैन धर्म के प्रसार के लिये साहित्य के अलावा ऐसे विद्वानो की भी आवश्यकता है, जो भिन्न-भिन्न धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन किये हुए हो और जो राज्य सभाओं और सार्वबनिक जल्सो मे जैनधर्म के प्रति जनता मे श्रद्धा एव भादर बढा सकें और जैन धर्म पर किये गये आक्षेपो का उत्तर दे सके। साथ ही जैनधर्म के प्रति फैलाये गये भ्रमो को दूर कर सके । ऐसे विद्वान् हमारे वर्तमान विद्यालयो से नही मिल सकते। इसके लिये हमे और मैं देख रहा हूँ कि वीर सेवा मन्दिर इस घोर प्रयत्नशील है ।
पृथक् प्रबन्ध करना होगा
३ - जैनेतरो मे जैनधर्म के प्रति श्रद्धा उत्पन्न कराने का तीसरा तरीका यह है कि गाव - गाव मे रात्रि - पाठशालायें खोली जाएँ और उनमे इस प्रकार के शिक्षक रखे जायें, जिनके हृदय जैनधर्म के प्रचार के लिये बेचैन हो ।
मैंने आपके सामने कोई नवीन बात नही कही है। जैनधर्म के प्रचार के लिये ऐसे कितने ही कार्य हमारे पूर्वजो ने किये हैं और वर्तमान मे कर रहे है । श्रसगठित
र अव्यवस्थित ढग
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