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सन्तान वीर होकर नामर्द बन रहे हो, होते हैं वीर कैसे आलम को यह दिखा दो ॥ ५ ॥
मशगूल ' ऐश में हो टुक ध्यान दो इधर भी, भूखे जो मर रहे है खाना इन्हें खिला दो ॥ ६ ॥
बिगडे हुए तुम्हारे सब काम ठीक होगे, हाँ धर्म पर तुम अपना तन-मन ये सब मिटा दो ॥ ७ ॥
मुस्लिम जो हो रहे है प्यारे तुम्हारे भाई, फिर फिक्र अपना करना पहले इन्हे बच्चा दो ॥ ८ ॥
यह फर्ज है तुम्हारा यह धर्म है तुम्हारा, सबको सबक दया का ऐ जैनियो सिखा दो ॥ ६ ॥
ऐ वीर । 'दास' की अब अन्तिम विनय यही है,
तुम बेकसो की सेवा करना मुझे सिखादो ॥ १० ॥
咖
जल जाये प्राणो की श्री गायक ! गा ऐसा
अधिकार
ममता, मिट जाये जग का अनुराग । गायन, घधक उठे जो ऐसी
आग ||
कम्पित मन दृढता को पाए जाए सुप्त उस स्वराग मे लय हो, करदू - मैं
अपने
भर जाए कायरता मन की— नाहरता मानवता उत्सुक मन होकर - निर्मित करे
क्षेम रहे, या प्रलय मचे, या — विश्व
पर स्वतंत्र बन जाने का हो- -मन
१. मस्त २. ऐशो-आराम ।
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पाए
भविष्य
हृदय भी जाग ।
प्राणो का त्याग ॥
विकसित हो अभिलाषाएँ भी और छेड़-छेड़ ! बस मेरे गायक वही सुरीली
कर
सन्मान |
महान ||
अलौकिक सुखप्रद - ज्ञान । मोहक तान ||
उठे हाहाकार । मेरे भव्य - विचार |
-
वाणी, आकृति, और क्रिया से हो बस, प्रगट यही उद्गार | नही चाहिये मुझे पराया-मिल जाये मेरा अधिकार ॥