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________________ आपस की फूट इस दर्जा तेरी हालत ऐ कोम गिर रही है। कागज की नाव गोया पानी पै तिर रही है। तकदीर आज तेरी क्यो तुझसे फिर रही है। सुख-शान्ती के बदले प्राफत मे घिर रही है ॥ तेरे ही दम कदम से थी रोशनी जहाँ में। तू क्या थी कह सके ये 1 ताकत नही जबा में ॥ १॥ ऐसा भी एक दिन था तू लाखो पे थी भारी। अफसोस आज खुद ही तू बन गई भिखारी ।। सीने पं तेरे हरदम चलती है गम की पारी। लुत्को अदा के बदले सीखी सितम शारी। हाथो से खुद तू अपने बरबाद हो रही है। सेजो को छोडकर तू काटो पै सो रही है ॥२॥ आपस की फूट तुझको बरबाद कर रही है । मैदान जीतकर तू खुद आप हर रही है ।। ससार की हवस में नाहक तू मर रही है। जुर्मो गुनाह की गठरी क्यो सर पे धर रही है। गफलत का परदा अपनी आखो से अब उठा दे। शाने कुहन का जलवा इक बार फिर दिखा दे ॥३॥ औरो की तरह तू भी दुनिया में नाम करले । जो काम कल है करना, वोह आज काम करले ॥ मरना पडेगा आखिर गो इन्तजाम करले । भक्ति दिखा के अपनी मालिक को राम करले। गफलत की नीद मे क्यो मदहोश हो रही है। काटे तू अपनी राह में खुद माप बो रही है ॥ ४ ॥ खोल प्रांख देख गाफिल दुनिया की क्या है हालत ? हर कौम की तमन्ना हासिल हो जाहो' हशमत ॥ हर शख्श के लवो पर जिके हुसूलेरफमत | तुझको मगर नही है पर्वाए नंगोजिल्लत ॥ ऐ कौम होश मे आ कुछ नाम कर जहा मैं । जो काम मोक्ष के हो, वोह काम कर जहा मैं ॥५॥ १. रुत्वा २. शान ३. बुलन्दी का हासिल करना ४.'बदनामी। २३८]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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