________________
समाज सम्बोधन * जैन कौम अपना तू सगठन बनाकर । अब सुर्खरू भी होजा वदनाम हो हुआ कर ॥१॥
जुल्मोसितम के बदले लाजिम है ये दया कर । हो रोग दूर जिससे ऐसी कोई दवा कर ॥ २ ॥
दिल से खुदी मिटाकर दिल आइना बनाकर । किस्मत हमें दिखा दे बिगड़ी हुई वनाकार ॥ ३ ॥
जब हम कहेगे तुमको तुम वीर के भगत हो । इस कौम का दिखा दो इक सगठन बना कर ॥४॥
पीछे हटो न हरगिज कुरबान जान कर दो। मैदाने मार्फत मे रक्खो कदम जमा कर ॥५॥
क्या देखते हो आमो उठो कमर को कसके।
खिदमत करो वतन की अव खूब मन लगाकर ॥६॥ लुत्फोकरम के बदले जुल्मोसितम न करना । क्या खाक पाओगे सुख औरो का दिल दुखा कर ।। ७ ॥
ऐ 'दास' आरजू है घर-घर मे हो उजाला । कर दो जहाँ मे रोगन मन का दिया जला कर ॥ ८ ॥
हृदयोद्बोधन
हृदय तू मेरा कहना मान । सबसे बन्धुभाव रख मन मे, तज अनुचित अभिमान । नीच न समझ किसी नर को तू, नीच कर्म जिय जान ||१|| भाव-भेष-भापा-भोजन हो भाइयन के सामान । इनको एक विवेक युक्त कर, हो तेरा उत्थान ॥२॥ क्या जीना जो निज हित जीना, शूकर-स्वान-समान । कर पावे यदि देश हेतु कछु, तो तू है धीमान ॥३॥
[ २३७