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उपदेशिक ढाला
(देशी - जब वक्त पड़ा तब कोई नहीं)
अब मोह नीद से उठ चेतन, क्यू भूल रहा जोबन धन मे । तेरे सुख के साथी मात-पिता, सुत-वाघव सोच जरा मन मे ॥
नर जन्म अमूल्य मिला तुझको, क्यो सोय रहा सुख चैनन में । कर ले अव तो सत्सग जरा, समझाय रहे गुरु सैनन मे ॥१॥
तेरा कुटुम्ब कवीला स्वारथ का, विन स्वास्थ देत दगा खिन में । यह चाँदनी चेतन दो दिन की, बिन काम लुभाय रहा किन में ॥२॥
दिन खेल-कूद मे खोय दिया, नही धर्मं किया बालापन में । प्रभु का गुन गान किया न कभी, विपया वश हो भर जोवन मे || ३ ||
हय हाथी ऊपर केल करा, रग-रेल करा चढ स्यदन मे । चरचा तन केशर चन्दन में, नहीं चित्त दिया गुरु वन्दन मे ||४|| अव वृद्ध भया कच श्वेत भया, कफ वाय मे घेर लिया छिन में । तेरी डगमग नाडी डोल रही, मनु कम्पन वाय हुआ तन मे ||५||
गये रावण विक्रम भोज वली, प्रजली मनु होरी फागन मे । उस मौज का खोज रहा न रती, नर तू मूली किस वागन मे ||६|| दया धर्म का संग्रह तू कर ले, घर ले गुरु शिक्षा कानन मे । कहा सोहन उत्तम धर्म यही, जिन आगम वेद पुरानन मे ||७||
लोग सयम को निषेधात्मक मानते है, पर वह जीवन का सर्वोपरि क्रियात्मक पक्ष है ।
जिसकी चाह नही है, उसकी राह सामने है और जिसकी चाह है, उसकी राह नही है । मान का मनुष्य विपर्यय की दुनिया में जी रहा है । चाह सुख की है, कार्य दु.ख के हो रहे है ।
सुख का हेतु अभाव भी नही है और प्रति भाव भी नही है । सुख का हेतु स्वभाव है ।
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