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________________ करो कुछ काम दुनिया में अहिंसा धर्म का हर घर मे गर प्रचार हो जाए। तो प्यारा स्वर्ग से बढकर यही ससार हो जाए ॥ १ ॥ करो वो काम दुनिया मे कि पर-उपकार हो जाए। तुम्हारे साथ औरो का भी वेडा पार हो जाए ॥ २ ॥ जो प्यासा है लहू का, फ्यो न वोह गमस्वार हो जाए। रवा दुनिया मे पर-उपकार को जब धार हो जाए ॥ ३ ॥ न जख्मी हो कोई उससे न वोह तलवार हो जाए । मगर फिर भी जो निकले मुह से दिल के पार हो जाए ॥४॥ अहिंसा धर्म की रगीनियो' में बूए उल्फत है। ये वो मय है पिए जो उम्र भर सरशार हो जाए ।।५।। अगर औरो के दौगम को अपना दर्दोगम समझें । अहिंसा धर्म की नय्या भवर से पार हो जाए ।। ६॥ रह ऐ 'दास' माथे पर न फिर टीका गुलामी का । अगर भारत हमारा नीद से वेदार' हो जाए ।। ७ ।। धर्म एक प्रवाह है । सम्प्रदाय उमका बांध है । बांध का पानी सिंचाई और अन्य कार्यों के लिए उपयोगी होता है। वैसे ही सम्प्रदाय से धर्म सर्वत्र प्रवाहित होता है । इसके विपरीत सम्प्रदायो मे कट्टरता, सकीर्णता पा जावे, तो यह केवल स्वार्थ-सिद्धि का अग वनकर कल्याण के स्थान पर हानिकारक और प्रापसी सघर्प पैदा करने वाला हो जाता है । शोपण का द्वार खुला रखकर दान करने वाले की अपेक्षा अदानी बहुत श्रेष्ठ है, चाहे वह एक कोडी भी न दे। __ मनुष्य अपनी गलती को नहीं देखता, दूसरे की गलती को देखने के लिए सहस्राक्ष बन जाता है । अपनी गलती देखने के लिए जो प्रांखें है, उनको भी मूद लेता है। १ खूबिया २ शराब ३ बेहोशी ४ जागना । २२०1
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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