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जैन सम्बोधन
जनियो । किस घुन में हो तुम क्या खबर कुछ भी नही । हो रहा ससार मे क्या, ध्यान कुछ इस पर नही ! म्लेच्छ और अनार्य जिनको, तुम बताते थे कभी; देख लो किस रंग मे है, आज वे मानव सभी ॥ १ ॥
और अपनी भी अवस्था का मिलान पूर्व थी वह क्या ? हुई अव क्या ? है कहाँ वह ज्ञान-गौरव, राज्य-वैभव आपका ? वह कहाँ वहु ऋद्ध्यलकृत तप, विनाशक पाप का ?२ ॥
करो जरा । विचार करो जरा ॥
वृष अहिंसा आपका वह उठ गया किस लोक में ? प्रेम पावन आपका सव, जा वसा किस थोक मे ? है कहाँ वह सत्यता, मृदुता, सरलता आपकी ? वह दयामय दृष्टि और परार्थपरता सात्विकी १३ ॥
पूर्वजो के धैर्य-शौर्योदार्य-गुण, तुम मे कहाँ ? है कहीं वह वीरता, निर्भीकता, साहस महा ? बाहुबल को क्या हुआ ? रणरग- कौशल है कहाँ ? हो कहा स्वाधीनता, दौर्बल्य शासन हो जहाँ १४ ||
वे विमान कहाँ गये ? कुछ याद है उनकी कथा ? बैठ जिनमे पूर्वजो को, गगन पथ भी सुगम था ? है कहाँ निर्वाह प्रण का ? और वह दृढता कहाँ ? शीलता जाती रही, दु.शीलता फैली यहाँ ? ५||
उठ गई सब तत्व चर्चा, क्या प्रकृति बदली सभी
स्वप्न भी, निज अभ्युदय का, जो नही श्राता कभी ! खो गया गुण-ग्राम सारा, धर्मधन सब लुट गया ! श्रख तो खोलो जरा देखो सवेरा हो गया || ६ ||
धर्म-निष्ठर पर बिराजी, रूढियाँ श्राकर यहाँ, धर्म ही के वेष में, जो कर रही शासन महा । थी बनाई तुम्ही ने ये, निज सुभीते के लिए, बन गये पर अब तुम्ही, इनकी गुलामी के लिए ॥७॥