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श्री वीर की अमली जयन्ती
श्री वीर की जयन्ती अमली मनानी होगी । तकलीद' उनकी हमको करके बतानी होगी ॥१॥ एकान्तम्रम तपस्सुवरे जड से उखाड़ फेंके । सत्यार्थियो की हरजा सगति बनानी होगी ॥२॥ फिर्को की वन्दिशो मे बरबाद हो चुके है । मत-पथ की अटक हठ खुद ही हटानी होगी ॥३॥ मठ मन्दिरो की बढ़ती मूढो की वेष पूजा । इन रूडियो में फंसती जनता बचानी होगी ॥४॥ सिद्धान्त-तस्व-निर्णय गुण गण का चढ़ाना । उपयोग शक्ति अपनी इनमें लगानी होगी ॥ ५॥
सब जीव मोक्ष सुख के हकदार है बराबर । यह साम्यवाद शिक्षा पढनी-पढानी होगी ॥ ६ ॥
छीने न प्राण-सत्ता कोई प्रमाद-वश से । जीवो की, यह व्यवस्था हमको जमानी होगी ।। ७ ।। परतंत्र बधनो से सब मुक्त हो रहेगे । भारत-वसुन्धरा की सेवा बजानी होगी ॥८॥
है वीर-धर्म-शासन पुण्यार्थ क्रान्तिकारी । घर-घर में ज्योति 'सेठी' इसकी जगानी होगी । ६॥
विद्या का फल मस्तिष्क-विकार है, किन्तु है प्राथमिक । उसका चरम फल प्रात्म-विकास है। मस्तिष्क-विकास परित्र-विकास के मध्य से ही प्रात्म-विकाम तक पहुंच जाता है, इसलिए चरित्र-विकास दोनो के बीच की कडी है।
१ अनुकूल प्रवृत्ति २ पक्षपात ३ जगह-जगह ४ जाति उपजातियो के बन्धनो में।
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