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________________ ( ३ ) तुमने अपनी क्षमताश्रो को अर्पित किया शरीर । रहे सतत कर्तव्य परायण सेनानी बड़े सकटो में भी तुमको देखा तुम साहस, समाज सेवा की वने रहे प्राचीर । प्रण-धीर । नही अधीर । कैसा भी हो किया न तुमने सहन कभी अन्याय याद तुम्हारी सेवाएँ आती हैं तनसुखराय । bok २] कविरत्न श्री कल्याणकुमार 'शशि' रामपुर ( ४ ) वह सीमित जीवन है, जिसका विश्व न हो परिवार । वह जीवन क्या ! दिया न जिसने पथ को नया सुधार । वह वचित जीवन है, जिसका ध्येय न पर उपकार । वह जीवन क्या, वना न जो वहु जन हित का आधार । इसी दिशा मे किये शक्तिभर तुमने बड़े उपाय । याद तुम्हारी सेवाएं श्राती हैं तनसुखराय ।
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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