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दूसरे की भलाई की ओर ध्यान ही नही जाता। लोगो की शुभकाक्षा गौर आशीर्वाद रोग के दूर करने के लिए रसायन का काम करते है और जो यह रसायन लोगो की सहायता कर प्राप्त करता रहता है और वह इनके जीवनदायक गुण का स्पष्ट अनुभव करता है ।
तरह से लुटने वाले
दुनिया मे कष्टो की कमी नही है । कठिनाई, कष्ट - परीक्षा और दुख आते ही रहते है पर जो लोग दुख की कल्पना करते रहते हैं वे अपने कप्टो को आसानी से दूना भारी बना लेते हैं यदि उनको कही विपरीत अवस्था या निराशा से सामना करना पडता है तो वे सोचने लगते है कि उनका ही वेडा गर्क होने वाला है । भाग्य उनके विरुद्ध है और वे हर है । इस तरह वे अपने को दुर्दशाग्रस्त समझने लगते है । जिसकी छाया उनके साथ रहने वालो पर पड़ने लगती है । जीवन उनके लिए एक वोझा वन जाता है। यह अवस्था बुरी है पर वदली जा सकती है उन्हे अपनी विचारधारा को बदलने के लिए कठिन प्रयत्न करना पडेगा । हमे अपने शारीरिक और मानसिक शक्ति का अपव्यय और दुरुपयोग करने का कोई अधिकार नही है ।
कई बार घर की परेशानी शरीर मे जोक की तरह लिपट जाती है और जीवन-रक्त को ही चूसती रहती है । किसी-किसी के लिए पाप का पश्चाताप जलाता रहता है और उनके शरीर को क्षीण और मस्तिष्क को विकृत करता रहता है । कुछ लोग अतृप्त आकाक्षाचो से पीडित रहते है । पीडित वासना उन्हें गुमराह रखती है । आत्मा उन्हें धिक्कारती रहती है । उन्हें लगता है कि अपने पर से उनका वश छूट गया है । अपनी आखो मे ही वे गिर जाते है । जीवन में उन्हे किसी सफलता की कोई आशा नही रह जाती ।
पाप और रोग में कार्य और कारण का सम्बन्ध है । यदि विचार गलत है तो यह उनका स्वाभाविक परिणाम होना चाहिए कि श्राप शरीर मे वे आरामी महसूस करें जिसके शरीर को रोग ने जर्जर बना दिया है उन्हें एक ही नुकसान नही होता कि उनका शरीर अशक्त हो जाता है । शारीरिक दु ख तो वे आसानी से सह लेते है । पर मानसिक दुख उन्हे अधिक परेशान करते है |
अशुभ कल्पना रोग को तो बढा ही देती है । वह रोग को जन्म भी देती है लोग जन्म भर बीमार रहते है । यह चिररोगी भी यदि अपने दिमाग को स्वस्थ होने के काम मे लगा
तो स्वस्थ हो सकती है । कुछ लोगो की यह धारणा होती है कि जरा-सी ठण्डक लगी और वे बीमार पडे और वे ठण्डक लगते ही वीमार पड भी जाते है क्योकि वे इसकी आशा करते है कि बहुतो की तो ऐसे रोग से जिमका कारण काल्पनिक हुआ करता है मृत्यु ही हो जाती है ।
सदा अपने लिए शुभ चिन्तन ही कीजिए । कल्पना को कभी गुमराह नही होने दीजिए ।
माता
श्राते ही उपकार याद हे माता तेरा । हो जाता मन मुग्ध, भक्ति भावो का प्रेरा । तू पूजा के योग्य, कीर्ति तेरी हम गावे । जी होता है, तुझे उठाकर शीश चढावें ।
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