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रही । सिद्धार्थ ने सबके समक्ष कहा, "भाइयो ! इस बालक के जन्म से हमारे कुल में वन-वान्य, सेना, घोड़े प्रादि की वृद्धि हुई है अतएव वालक का नाम 'वर्द्धमान' रखना ठीक होगा ।"
वर्द्धमान बचपन ही से बड़े वीर, वीर, गम्भीर और निर्भीक प्रकृति के थे । उनके बचपन की एक रोचक घटना है--एक वार वर्द्धमान अपने साथियों के साथ उद्यान मे कीड़ा कर रहे थे । इतने ही मे उनके साथियों ने देखा कि वृक्ष की जड़ में लिपटा हुआ एक सर्प फुंकर मार रहा है | यह देख वद्धमान के साथी धवड़ा गये । सबको अपने प्राणों की पड़ | परन्तु वीर बद्ध मान न डरे । वह अचल भाव से खड़े रहे और खेल ही खेल में उस सांप को अपने हाथ में पकड़ लिया। इसी प्रकार एक बार वर्द्धमान राजमहल मे बैठे हुए थे। नगर में अचानक कोलाहल मचने की आवाज कानों में पडी। पूछने पर विदित हुआ कि राजा का हाथी मतवाला होकर वन्धनमुक्त हो गया है और लोगों को दुख दे रहा है । इतना सुनते ही बद्ध मान तुरन्त घटनास्थल पर जा पहुँचे और हाथी पकड़ कर महावत के हवाले कर दिया। समय अपनी दृढ़ता और निर्भयता प्रदर्शित करने के कारण बद्ध मान 'महावीर' कहे जाने लगे ।
इसी प्रकार के अन्य संकटो के
हृदय द्रवित हो गया
वेद काल से चली आनेवाली विचारधाराओं का मन्थन महावीर ने गम्भीरतापूर्वक किया था । उनके जीवन पर इन विचारवाराओं का गहरा प्रभाव पड़ा था। मानव उत सम्य मायावी, वासनासक्त और वक्र हो गया था। हिंसा और वासना से अन्धा बना हुआ था। धर्म के नाम पर यज्ञ आदि मे मूक पशुओं की बलि दी जाती थी ।
भगवान महावीर ने देखा कि चारों ओर अज्ञान फैला है । निज स्वार्थ से लोग दूसरे जीवो की हिंसा कर रहे हैं । सब जगह दुख ही दुख फैला हुआ है । यह देख कर महावीर का कोमल हृदय द्रवित हो गया। उन्होंने जग का कल्याण करने, उसमे सुख, शांति और समता भाव पैदा करने तथा सर्वप्रथम आत्मबल प्राप्त करने की दृढ़ प्रतिज्ञा की ।
महावीर ने वस्त्रादि, आभूषणो, स्वादिष्ट भोजन, मित्र, बन्बु, धन आदि को सदा के लिये तिलाजलि देकर गृह त्याग दिया और ज्ञातृपंड उद्यान में जाकर पंचपुष्टि से क्यों गलौच कर ३० वर्ष की आयु मे नग्न दिगम्बर मुनि हो गये । लगभग १२ वर्ष तक उन्होंने घोर चर्या की। इस काल मे उन्हें भयंकर से भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ा परन्तु, एक वीर योद्धा की भाति वे अपने कर्त्तव्य पथ से कभी विचलित न हुए ।
तपस्वी जीवन मे महावीर ने दूर-दूर तक भ्रमण किया और अनेक क्प्ट सहे । विहार मे राजगृह ( राजगिरि), चम्पा (भागलपुर), नहिया (मुंगेर), वैशाली ( वसाद) मिथिला (जनकपुर) आदि प्रदेशो मे घूमे । पूर्वी उत्तरप्रदेश के बनारस कौशाम्बी (कोमस) अगेव्या श्रावस्ती आदि स्थानों में गये तथा पश्चिमी बंगाल के लाढ (राव) आदि प्रदेशों में उन्होंने भ्रमण किया ।
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