________________
राजस्थान नहर योजना और उसके प्रवर्तक
राजस्थान की प्यासी भूमि को शस्य श्यामला बनाने का एक मात्र साधन
अपने मित्र का महान् प्रशंसनीय कार्य भारत की इस पीढी के लोगो को एक स्वप्न तया एक मधुर कल्पना को साकार होते देखने का सौभाग्य प्राप्त होगा। राजस्थान के मरुस्थल प्रदेश में एक बडी नहर का निर्माण सभवत अव भी कुछ लोगो को एक मधुर कल्पना ही प्रतीत हो । सन् १९४८ मे जव उस समय की बीकानेर रियासत के एक मुख्य इन्जीनियर श्री कवरसन ने सबसे पहले यह विचार रखा तो वडे-बडे इन्जीनियरो और विशेषज्ञो को यह कोरी कल्पना ही लगी । लेकिन अब यह विचार कल्पना नही रहा। अब यह साकार रूप ले रहा है और केवल राजस्थान के लोगो के लिए ही नही बल्कि समस्त देश की जनता के लिए सुख-समृद्धि के द्वार खोल रहा है । राजस्थान नहर योजना में समस्त देश के साथ सकट को भी दूर करने की क्षमता है।
राजस्थान नहर योजना की प्रेरणा की कहानी वडी दिलचस्प है। देश के एक इलाके के लोगो को असीम कप्ट और दारुण दुख उठाते देख कर एक व्यक्ति के हृदय में उनके कप्ट दूर करने की भावना जाग उठी। उस व्यक्ति ने उनकी समस्या का समाधान निकाला और उसी समाधान ने समस्त देश की समृद्धि के द्वार खोल दिये।।
यह कहानी स्वय इस महान योजना के प्रवर्तक ने गब्दो मे व्यक्त की है -
"बहुत कम बारिश होने की वजह से इस इलाके के लोग फसलें नही उगा पाते, पानी जमीन के नीचे बहुत गहराई मे मिलता है और फिर भी यह पानी पीने तथा सिंचाई के लायक नही होता-पशुप्रो के लिए चारे की कमी और पीने के पानी की कमी- इन दैवी विपत्तियो के कारण इन लोगो के कप्ट और समस्त देश मे अन्न का अभाव-इन सब बातो से मुझे एक ऐसा रास्ता ढूंढ निकालने की प्रेरणा मिली जिससे यह सारा रेगिस्तान हरे-भरे खेतो से लहलहा उठे।"
लोगो की इन कठिन परिस्थितियो को देख कर श्री कवरसैन के मस्तिप्क में एक विचार पाया। इस विचार ने दृढ निश्चय का रूप ले लिया। वह दृढ निश्चय था देश के साधनो का जनता के कल्याण के लिए उपयोग और इस प्रकार देश की समृद्धि के लिए नया मार्ग प्रशस्त करना।
राजस्थान नहर योजना की कल्पना करने के दस वर्ष बाद आखिर एक दिन आया जब भारत के इतिहास मे एक नए परिच्छेद का आरम्भ हुमा । यह चिरस्मरणीय दिन तीस मार्च १९५८ था जब केन्द्रीय गृह मत्री श्री गोविन्दवल्लभ पन्त ने ससार की इस महानतम योजना की खुदाई के काम का समारम्भ किया।
१७४ ]