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________________ और जैनियो की सख्याएं पृथक्-पृथक् सूचित की गई । १५ अगस्त १९४७ को हमारा देश स्वतन्त्र हुआ और सार्वजनिक नेताओं के नेतृत्व मे यहा स्वतन्त्र मर्वतन्त्र प्रजातन्त्र की स्थापना हुई । किन्तु १९४६ मे जो जनगणना अधिनियम पास किया गया उसमे यह नियम खग्वा गया कि जैनो को हिन्दुको अन्तर्गत ही परिगणित किया जाय - एक स्वतन्त्र समुदाय के रूप मे पृथकू नही । इस पर जैन समाज मे वडी हलचल मची । स्व० आचार्य शान्तिसागरजी ने कानून के विरोध मे आमरण अनशन ठान दिया, जैनो के अधिकारियों को स्मृतिपत्र दिए, उनके पास डेपुटेशन भेजे । फलस्वरूप राष्ट्रपति, प्रधान मन्त्री तथा अन्य केन्द्रीय मन्त्रियों ने जैनो को श्राश्वासन दिये कि उनकी उचित माग के साथ न्याय किया जाएगा। जैनो की भाग थी कि उन्हे सदैव की भाति १६५१ की तथा उसके पश्चात् होने वाली जनगणनाओ मे एक स्वतन्त्र धार्मिक समाज के रूप मे उसकी पृथक् जनसख्या के साथ परिगणित किया जाय। उनका यह भी कहना था कि वे अपनी इस भाग को वापस लेने के लिए तैयार है यदि जनगणना मे किसी अन्य सम्प्रदाय या समुदाय की भी पृथक गणना न की जाय और समस्त नागरिको को मात्र भारतीय रूप में परिगणित किया जाय । ( देखिए हिन्दुस्थान टाइम्स ६-२-५०) । जैनो का डेपुटेशन अधिकारियो से ५ जनवरी १९५० को मिला। डेपुटेशन के नेता एस० जी० पाटिल थे। इस अवसर पर दिये गये स्मृति-पत्र मे हरिजन मन्दिर प्रवेश अधिनियम तथा बम्बई वैगर्स एक्ट को भी जैनो पर न लागू करने की मांग की। अधिकारियो ने जैनो की माग पर विचार विम किया और अन्त मे भारत के प्रधान मन्त्री नेहरूजी ने यह श्राश्वामन दिया कि भारत सरकार जैनो को एक स्वतन्त्र-पृथक धार्मिक समुदाय मानती है और उन्हें यह भय करने की कोई श्रावश्यकता नही है कि वे हिन्दू समाज के अग मान लिए जाएंगे यद्यपि वे और हिन्दू अनेक वातो मे एक रहे है ।' (हि० टा० २-२-५० ) प्रधान मन्त्री के प्रमुख सचिव श्री ए० के० श्री एस० जी० पाटिल के नाम लिखे गये । ३१-१-५० के पत्र मे जैन बनाम हिन्दू सम्वन्धी सरकार की नीति एव वैधानिक स्थिति सुस्पष्ट कर दी गई है। शिक्षा मन्त्री मौलाना अबुलकलाम प्राजाद ने भी श्री पाटिल को लिखे गये धरने पत्र मे उक्त आश्वासन की पुष्टि की और आशा व्यक्त की कि श्राचार्य शान्तिमागरजी अत्र अपना अनशन त्याग देंगे। यह भी लिखा कि अपनी स्पष्ट इच्छाओ के विरुद्ध कोई भी समूह किमी अन्य समुदाय मे सम्मिलित नही किया जाएगा। (वही, ६-२-५०) लोक सभा मे उपप्रधान मन्त्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने बलवन्तसिंह मेहता के प्रश्न के उत्तर में सूचित किया कि जनगणना मे धर्म वीक के अन्तर्गत हिन्दू और जैन पृथक-पृथक परिगणित किये जाएगे (वही, ८-२-५० ) । इसी बीच स्व० ला० तनसुखराय ने अखिल भारतीय जैन एमोगिएसन के मन्त्री के रूप मे उपरोक्त मेमोरेण्डम के औचित्य पर प्रापत्ति की (वही, ४-२-५० ) और अपने वक्तव्य मै उन्होने इस बात पर बल दिया कि शब्द हिन्दू जातीयता सूचक है, राजनैतिक, सामाजिक एव प्रार्थिक दृष्टियों ने जैन हिन्दुओ से पृथक नहीं है किन्तु उनको अपनी पृथक सस्कृति है । [ १४e
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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