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प्रत्यधिक निन्दा, भर्त्सना की है उसका कारण यही है कि वे जैन थे, यह कि बाल्मीकि रामायण मे राक्षस जाति का जैसा वर्णन है उससे स्पष्ट है कि वे जैनो के अतिरिक्त अन्य कोई हो ही नही सकते और रामायण के रचयिता ने उनका जो वीभत्स चित्रण किया है वह धार्मिक विद्वेष से प्रेरित होकर ही किया है (वही, पृ० २६, २७, ३०) अन्य अनेक प्रख्यात विद्वानो ने जैनधर्म और उसके अनुयायियो को स्वतन्त्र सत्ता वैदिक परम्परा के ब्राह्मण (या हिन्दू) धर्म और उसके अनुयायियो के उदय से पूर्व से चली भाई निश्चित की है, कुछ ने सिन्धु घाटी की प्रागैतिहासिक सभ्यता मे भी जैनधर्म के उस समय प्रचलित रहने के चिन्ह लक्ष्य किये है | (वही, पृ० ३६ श्रादि ) । उसके ब्राह्मण (हिन्दू) धर्म की कोई शाखा या उपसम्प्रदाय होने का प्रायः सभी विद्वानो ने सबल प्रतिवाद किया है ।
श्रव 'हिन्दू' शब्द को ले । प्रथम तो यह शब्द भारतीय है ही नही, विदेशी है और अपेक्षाकृत पर्याप्त अर्वाचीन है । इतिहासकाल मे सर्वप्रथम जो विदेशी जाति भारतवर्ष श्रीर भारतीयो के स्पष्ट सम्पर्क मे श्रायी वह फारसदेश के निवासी ईरानी थे । छठी शताब्दी ईसा पूर्व मे ईरान के शाहदारा ने भारतवर्ष के पश्चिमोत्तर सीमान्त पर आक्रमण किया था और उसके कुछ भाग को उसने अपने राज्य मे मिला लिया था तथा उसे उसकी एक क्षेत्रयी ( सूबा) बना दिया था । उस काल मे वर्तमान अफगानिस्तान भी भारतवर्ष का ही अग समझा जाता था । ईरानी लोग सिन्धु नद के उस पार के प्रदेश को भारत ही समझते थे, इस पार का समस्त प्रदेश उनके लिये चिरकाल तक अज्ञात बना रहा। ईरानी भाषा में 'स' को 'ह' हो जाता है, अतएव वह लोग सिन्ध नदी को दरियाए हिन्द कहते थे और उस समरत प्रदेश को मुल्के हिन्द, तथा उसके निवासियो एव भाषा को हिन्दी या हिन्दवी कहते थे । उनका यह सूवा भी हिन्द की त्रयी ( क्षत्री ) कहलाता था और उनकी सेना का भी एक अग हिन्दी सेना था ।
रानियो के द्वार से ही यूनानियो को सर्वप्रथम इस देश का ज्ञान हुआ और ईसा पूर्व ३२६ मे सिकन्दर महान के श्राक्रमण द्वारा उसके साथ उनका प्रत्यक्ष सम्पर्क हुआ । यूनानी लोग 'ह' का उच्चारण नही कर पाते थे । उन्होने ईरानियो के 'हिन्द' को 'इन्ड' कर दिया। वह हिन्द (सिन्धु) नदी को 'इन्डस' कहने लगे और उसके तटवर्ती उस हिन्द (सिध) प्रदेश या देश को इन्डिया इन्डिका कहने लगे। जब सिंघ नदी के इस पार के प्रदेश से उनका परिचय हुआ तो पूरे भारत देश को भी वे उसी नाम से पुकारने लगे । रोम देश के निवासियो ने भी यूनानियो
भी भारतवर्ष का सूचन
का ही अनुकरण किया और कालान्तर मे यूरोप की अन्य सब भाषाओ मे इन्ड, इन्डि, इन्डे, इन्डियेन, इन्डीस, इन्डिया आदि विभिन्न रूपो मे हुआ जो सब एक ही मूल यूनानी शब्द की पर्याय है । इस प्रकार अग्रेजी मे भारतवर्ष के लिए इन्डिया और भारतीय विशेपण के लिए इन्डियन तथा इन्डो शब्द प्रचलित हुए ।
चीनियो को भारतवर्ष की स्पष्ट जानकारी सर्वप्रथम उत्तरवर्ती हानवश के सम्राट वृति के समय में हुई बताई जाती है
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दूसरी शताब्दी ईस्वी पूर्व मे और उस काल के एक चीनी