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आपकी लेखन शैली जैमी सरल और सरम हे वैसी मनमोहक भी है । आपने तारणसाहित्य का उद्धार किया । उनके 8 ग्रन्थो का सम्पादन कर तारण समाज का उद्धार किया । आपने बौद्ध साहित्य का भी अध्ययन किया । अपने जीवन मे अनुपम साहित्य लिखा । उनके ग्रन्थो को देखकर हिन्दी साहित्य परिषद जयपुर ने उनके सम्बन्ध मे लिखा । ब्रह्मचारी को जैन साहित्य का अत्यन्त विद्वान् रूढिवाद के निष्पक्ष आलोचक, समाज और साधु संस्थानो के विपय मे मौलिक विचार रखने वाला स्वीकार किया ।
वे अनेक सस्थाओ के संस्थापक और सचालक थे। उनके अनुपम कार्यों के कारण वे मूर्तिमान जागृत सस्था वन गये थे । यही कारण था कि २८ दिसम्बर १९१३ ई० को काशी मे पूज्य ब्रह्मचारीजी के सम्मान के लिए डा० हवन जैकोवी की अध्यक्षता मे 'जैन धर्मं भूपण' की पदवी से विभूषित किया गया । उन्होने सामाजिक सुधार के लिए भा० दि० जैन परिषद की स्थापना की। वे उन सुधारक थे। अपने पथ के पथिक थे किसी वहिष्कार की पर्वाह नही करते थे ।
इस वीसवी सदी मे विशाल जैनसंघ के प्रथम सयोजक के रूप मे हम उन्हे देखते है । इसके लिए उन्होने अनेक स्थानो पर अनेक परमार्थिक सस्थाएँ स्थापित की। वे समाज के श्रीमान विद्वानो और योग्य कार्यकर्ताओ से मिले और उनसे पृथक्-पृथक् कार्य लिए । महिलाओ को जागृत करने, उनकी जीवन साधनाओ की पूर्ति करने महिलाओ के जन्मसिद्ध अधिकारो की प्राप्ति के लिए उन्होने अपने मान-अपमान की भी परवा नही की । उन्होने अपनी जीवन-साधना से समाज मे अनेक स्थानो पर अनेक युवको और प्रादर्श महिलायो का निर्माण किया । उनके हृदयो मे वह मन्त्र फूका जो जीवन भर देश-समाज की सेवा करेंगे । जैन धर्म के प्रसार के लिए अपने जीवन की बाजी लगायेंगे ।
ब्रह्मचारीजी इस युग के समन्तभद्र थे जिनके हृदय मे सतत जैन शासक के प्रचार की अद्भुत लगन थी । आज ब्रह्मचारीजी नही है, पर उनका प्रादर्श सदैव समाज के सेवको को वल और प्रकाश देता रहेगा ।
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