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सन् १९१४ मे आपके पिता ला जौहरीमलजी भटिण्डा से पटियाला मे रहने लगे। उन दिनो पजाब मे सेवा समितियो का बहुत प्रचार था । श्री तनसुखरायजी भी वहाँ को सेवा समिति के एक स्वय-सेवक बने । उनके उत्साह और सेवा कार्य की सराहना सबने की और वहां की जनता उन्हे बहुत चाहने लगी।
__ सन् १९१८ मे रेलवे के दफ्तर में गवर्नमेट की मुलाजमत में प्रवेश किया। सादगी व स्वदेशी कपड़ो से वचपन से ही प्रेम था। गवर्नमेट मुलाजमत होने हुए भी स्वदेशी वस्तुप्रो का प्रयोग व स्वदेशी वस्त्रो को धारण करने की प्रतिज्ञा कर ली और राजनैतिक कार्यों में दिलचस्पी लेते रहे।
__ सन् १९२१ में असहयोग आन्दोलन में मेरे-पजाव ला लाजपतरायजी के आदेश पर गवर्नमेट मुलाजमत को त्याग कर राजनैतिक क्षेत्र मे पाये । आपने ला लाजपतरायजी के साथ तिलक स्वराज्य फण्ड एकत्रित करने में काफी काम किया। प्राप पर ला० लाजपतरायजी का बहुत प्रेम था।
१९२२ में स्वदेशी वस्तु के प्रचारार्थ समिति बनाकर सैकड़ो लोगो ने स्वदेशी कपडा तथा वस्तुओ को धारण करने का प्रण कराया।
१९२३-२४ मे आप अपने जन्म-स्थान रोहतक मे आ गये और काग्रेस के कार्य में हिस्सा लेने लगे, कुछ दिनो मे वहाँ के अच्छे काग्रेसी कार्यकर्तामो मे लालाजी की गिनती होने लगी।
१९२५ में खादी प्रचार समिति तथा हिन्दी प्रचार समिति का कार्य किया।
१९२६ मे नौजवान भारत सभा जो कि पजाब की क्रान्तिकारी सोसायटी थी, उसके सदस्य बने और सन् २७ मे मजदूर किस न सभा का पजाब प्रान्तीय सम्मेलन किया, जिसके प्रधानमन्त्री बने । उसके कारण सरकार की कडी निगाह हो गई और दो साल तक सी आई.डी. इनके पीछे लगी रही।
१९२८ मे पनाव प्रान्तीय काग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी के सदस्य चुने गये और १९२६ के लाहौर काग्रेस अधिवेशन मे आपको प्रतिनिधि चुनकर भेजा गया। इस अधिवेशन मे मापने स्वयसेवको के कप्तान बनकर बड़ी सेवा की।
१९३० का असहयोग आन्दोलन मे आपने बहुत सक्रिय कार्य किया, रोहतक जिले में सत्याग्रहियो की भरती, उनके खाने-पीने रहने व धन एकत्रित करने का सारा भार उन पर ही था । आन्दोलन में हिस्सा लेने के कारण आपको ९ मास कारावास में भी रहना पड़ा।
१९३१-३२ मे हरिजन-उद्धार का कार्य जोरो से किया और हरिजन विद्याथियो के लिए आश्रम की नीव डाली, जिसका बहुत सारा खर्चा आप अपने पास से करते थे।
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