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सन् १९२२ मे स्वदेशी वस्तुग्रो के प्रचारार्थ श्रापने समिति बनाकर अनेकानेक लोगो को स्वदेशी वस्त्र तथा वस्तुनो को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया एवं उनसे दृढ प्रतिज्ञायें कराई । सन् १९२२-२४ मे श्राप अपनी जन्मस्थली रोहतक मे आकर रहने लगे थे और वही पर कर्मठ काग्रेसी कार्यकर्त्ता के रूप मे कार्य करने लगे थे । १९२५ ई० मे आपने खादी-प्रचार का बीडा उठाया था श्रीर तत्सम्बन्धी एक समिति की स्थापना की थी ।
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लाला तनसुखराय की राजनीतिक गतिविधि यही समाप्त नही हो जाती है वरन् १९२६ मैं वे पंजाब की क्रान्तिकारी सोसाइटी - " नौजवान भारत सभा" के सक्रिय सदस्य बने थे । यही नही, १६२७ मे आप पजाव मे "मजदूर-किसान सभा " के प्रान्तीय सम्मेलन के प्रधान मन्त्री निर्वाचित किये गये थे । १६२८ में आपको पजाब प्रान्तीय काग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी परिषद् का सदस्य चुना गया था । सन् १९२६ मे इण्डियन नेशनल काग्रेस के लाहौर में होने वाले वार्षिक धिवेशन में आपको पजाब से प्रान्तीय प्रतिनिधि के रूप मे भेजा गया था। वहाँ पर भापने स्वय सेवको के कप्तान के रूप मे जो-जो सेवाएं की थी, उनकी सर्वत्र भूरि-भूरि प्रशंसा की गई थी ।
सन् १९३० में जब पुन असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ हुआ, तब आपने रोहतक जिले मे सत्याग्रहियों की भारी भरती की थी। आप ही ने उनके रहन-सहन, खाने-पीने आदि का कार्य सुचारूप से कुशलतापूर्वक निभाया था । प्रस्तुत आन्दोलन-कार्य मे भाग लेने के कारण आपको & मास का कठोर कारावास भुगतना पडा ।
सन् १७४० मे श्राप जिला-मण्डल, देहली के प्रधान मन्त्री तथा १६४१ में अध्यक्ष निर्वाचित किये गये थे । सन् १९४२ के "भारत छोडो" प्रान्दोलन के अवसर पर आपने जेल जाने वाले वन्धुनो के कुटुम्बियो की भरसक सहायता एव सेवा की थी। तभी आपने एक सोसायटी की स्थापना कर जेल-मन्त्रियों की पैरवी करने में सक्रिय भाग लिया था । सन् १९५८ मे यद्यपि आप अस्वस्थ रहने लगे थे, किन्तु फिर भी आपको दरियागज दिल्ली काग्रेस मण्डल कमेटी का सक्रिय सदस्य चुना गया था । यह सब कुछ लालाजी की राष्ट्रसेवा एव राष्ट्रभक्ति के परिणामस्वरूप ही तो ।
धार्मिक एवं सामाजिक सेवायें यह कहने अथवा लिखने की बात नही कि लाला तनसुखरायजी ने बडी धार्मिक सेवाएं की है। नि सन्देह शैशव काल से ही उन्हे धर्म से अगाव प्रेम था । उनकी मनोवृत्ति प्रारम्भ से ही धार्मिक कार्यों की ओर अनायास
जाती थी ।
प्रवृत हो
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सन् १९०८ मे जब लालाजी केवल नो वर्ष ही थे, तब ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी का पजाब मे विहार करते हुए मुल्तान में आगमन हुआ । लालाजी ब्रह्मचारीजी के पास रहते थे और उन्ही की सेवा में रत रहते थे । सन् १९३४ में आप लक्ष्मी बीमा कम्पनी के मैनेजर होकर दिल्ली आये । इसी वर्ष अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषद् का अधिवेशन दिल्ली
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