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नवयुवकों के प्रेरणा-स्रोत
___ श्री सुल्तान सिंह जैन एम०ए० मंत्री प्र०भा०वि० जन परिषद्-शाखा, शामली (उ० प्र०)
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा है"विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी, मरो परन्तु यो भरो कि याद जो करे सभी। हुई न यो सुमृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिये, मरा नही वही कि जो जिया न आपके लिए। यही पशु-प्रवृति है कि आप आप ही घरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।" उपरोक्त पद मे गुप्तजी ने स्पष्ट रूप से अकित कर दिया है कि विश्व मे उन्ही लोगो का जीना और मरना सफल है जो दूसरो के लिए नीते-मरते है। जब हम लाला तनसुखरायजी के जीवन को उक्त पद की कसौटी पर परखते हैं तो वह वावन तोले पाव रत्ती सहीउतरता है।
यह बात किसी से छिपी नही है कि लालाजी एक पुराने, तपे हुए, कर्मठ, अनुभवी, निस्वार्थ, कर्तव्य-परायण, नम्र एव लगनशील समाज-सेवक थे। निःसन्देह उनका अविकाश जीवन समाज-सेवा, राष्ट्र-सेवा तथा जन-कल्याण में व्यतीत हुआ था।
लाला तनसुखरायनी की प्रतिमा सर्वतोमुखी थी। सभी विपयो में उनकी अबाध गति थी। यदि गम्भीरतापूर्वक देखा जाये तो ज्ञात होगा कि वे गुदडी के लाल थे, क्योकि वे छिप-छिपे वे सभी कार्य करते रहते थे जो कि महान व्यक्ति को करने चाहिए । किन्तु उनकी कभी भी यह आकाक्षा नहीं रही कि किसी भी काम के करने से उन्हें ख्याति प्राप्त होगी और लोग उन्हे महान विभूति के रूप में पूजेंगे।
जब हम लालाजी के समूचे जीवन पर दृष्टिपात करते है तो वह हमे चहुंमुखी पल्लवित एवं पुष्पित दृष्टिगोचर होता है । इसका प्रमुख कारण है कि उनका कर्तव्य-क्षेत्र ही वहुमुखी था। उन्होने जीवन-पर्यन्त सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक क्षेत्रो मे निस्वार्थरूप से जी-जान से सेवायें की थी। उनके जीवन की कुछ झलकियाँ देखिए -
राजनैतिक सेवाएं -सन् १९१९ मे जिन दिनो लालाजी रेलवे-विभाग में नौकरी कर रहे थे, उन्ही दिनो असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ हो गया। मापने सरकारी नौकरी की चिन्ता न को और तुरन्त ही स्वदेशी वस्तुओ एव वस्त्रो को अपनाने की दृढ प्रतिज्ञा कर ली। सन् १९२१ शेरे पजाव लाला लाजपतराय जी की प्रेरणा से आपने सरकारी नौकरी को तिलाजली दे दी,
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