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बोलो जवाहरलाल
ताराचन्द 'प्रेमी
सदस्य नगरपालिका, फिरोजपुर धरती का वेटा धरती की नैय्या, लाया भवर से निकाल । किसके सहारे छोडा है प्यारे, बोलो जवाहरलाल || रोती है माता विन तक बेटा, सामो मे पाके समाजा। रोती हे गगा रोती हे जमुना, पाजा हिमालय के राजा ॥ खोकर के तुमको भूखा ये नगा, इन्सा, हुआ है पामाल । किसके सहारे छोडा हे प्यारे, वोलो जवाहरलाल ।। विश्वास इतना तुम पर निछावर, जीवन के अनमोल मोती। स्वरूप रानी के पुष्प विकसित, कमला के नैनो की ज्योती।। पाया वा दिल तूने कितना निराला, जैसे ये सागर विशाल । किसके सहारे छोडा है प्यारे, बोलो जवाहरलाल |
मेरी एक मेंट
लगभग आठ वर्ष पूर्व की बात है दिल्ली दरियागज मे वीर सेवा मन्दिर के भवन का शिलान्यास साहू शान्तीप्रसादजी के करकमलो से होने वाला था साहू जी का पालम हवाई अड्डे पर स्वागत करने वालो मे ला० तनसुखरायजी, ला० राजकिशनजी, बा० छोटेलालजी कलकत्ता, तथा मै "ताराचन्द प्रेमी" चार व्यक्ति स्वागतार्थ उपस्थित थे । ला० तनसुखराय जी के परिचय मे आने का मेरे लिए यह प्रथम अवसर था पीर सेवा मन्दिर के इस शिलान्यास समारोह में मुझे भी एक गीत पढना था, मेरे गीत के पश्चात् लालाजी ने गदगद होकर मुझ से कहा था कि प्रेमीजी, आपने तो जादू कर दिया, फिर तो मुझे अनेक बार उनके सम्पर्क में आना पड़ा। उनके व्यक्तित्व को बहुत समीप से देखने का मौका मिला। समाज सुधार के लिए मैंने उनके हृदय मे एक वे-मिसाल तडप देखी । अस्वस्थ होते हुए भी, लालाजी हर समय सामाजिक गतिविधि के लिए चिन्तित रहते । जबकि कभी मैं उनसे मिलता वह एक वात अवश्य कहते कि पुण्य से तुम्हे कला का वरदान मिला है। इस कला का उपयोग अधिक से अधिक धर्म और समाज-सेवा मे होना चाहिए।
२२ जनवरी १९६३ को अस्वस्थ होते हुए भी लालाजी मेरी पुत्री के विवाह मे फिरोजपुरझिरका पधारे । दिल्ली से बाहर जाने की सम्भवत यह अन्तिम यात्रा थी। फिर मैं समय-समय पर अनेक बार उनके स्वास्थ्य सम्बन्धी समाचार लेता रहा । उनका स्वास्थ्य गिरता ही गया और एक दिन सुना कि लालाजी अब नहीं रहे, हृदय को बडा आघात पहुंचा। मैं कहूँगा कि ला. तनसुखरायजी का सम्पूर्ण जीवन सामाजिक सेवाओ का एक इतिहास रहा है, वह चले गए उनकी सेवाएं अमर रहेगी।