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बड़े नक्षत्रजीवी
डा. महेन्द्र सागर प्रचण्डिया एम० ए०, पी० एच० डी०,
खिरनीगेट, अलीगढ़
जिस प्रकार हिन्दू समाज में व्यक्ति के दिवगत होने पर परिजनो द्वारा श्राद्ध का प्रायोजन किया जाता है, उसी प्रकार सामाजिक कार्यकर्तानो के लिए मनीपी जगत में 'स्मृति-प्रथ का प्रकाशन दिया जाता है।
श्राद्ध में सज्जन को असन और कही कही पर बसन वेष्टित भी किया जाता है, किन्तु स्मृति ग्रन्थ में प्राय प्रेरणा का इजेक्शन भरा जाता है । यहाँ लालाजी ने अपने जीवन के पचास वर्ष-समाज, जाति, तथा धर्म के उत्कर्ष में खपा दिए, यही रहस्य-- उद्घाटित होता है।
प्रत्येक अस्तित्व का महत्त्व उसके प्रभाव मे उत्थित हुमा करता है । जव लालाजी कार्यरत रहे बहुतो ने उनकी योजनामो के प्रति सदिच्छा व्यक्त की किन्तु अनेक ऐसे भी पाए गए जिन्होने अनिच्छा अभिव्यक्ति की । आज वे सभी मिलकर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को दुहाई देते है-यह जगत की, जीवन की विलक्षण विडम्बना है।
समाज की सेवा करना एक व्यसन हो गया है। जो व्यक्ति व्यसन के वशीभूत होकर कुछ करते है मेरे दृष्टिकोण से वह काम किसी काम का नही मात्र ढेर है लेकिन जो इससे मुक्त होकर कुछ नव्य किन्तु भव्य कार्य-प्रणालियो की स्थापना कर प्राणी मात्र का उपकार करते है वह श्रमसफल बनाता है।
मुझे जहाँ तक पता लगा लालाजी अपने काल और क्षेत्र के अनुसार अपने को ढालकर जिस तन्मयता, कर्मठता और सहनशीलता से सफलता की स्थापना कर सके है वह उनका समग्न तन्त्र-तत्व और मन्त्र-महत्त्व वस्तुत श्लाघनीय है।
लालाजी नक्षत्री जीव थे। जिस प्रकार नक्षत्र अधेरे से अन्त तक जूझता रहता है, लालाजी हरदम हर बुराइयो से झगडते रहे । सत्याग्रही की सदा विजय हुआ करती है । लालाजी सत्याग्रही थे। इसीलिए उन्हें अपने प्रत्येक प्रयास मे सफलता प्राप्त हुई । लालाजी महान थे, घे वेमिसाल थे, साकार अनन्वय अलकार थे।
श्रीमान लाला तनसुखराय जैन स्मृति ग्रन्थ निकालकर उनकी समूची सेवाओ, भावनामो और कामनाओ को मूर्तरूप देने का प्रयास किया गया है, प्रसन्नता की बात है।
ऐसे सामाजिक कर्ता को मेरे करोड़ो प्रणाम पहुंचे, यही कहकर अपनी श्रद्धाञ्जलि सम्मिलित करने जा रहा हूँ। १४]