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स्वसमरानन्द । (७६) ....... उमंग २ कर आता है और विना कोई विकार पैदा किये हुए एक समय मात्र विश्राम कर अपना आदर चेतन राजा द्वारा न। पाता हुआ चल देता है । मोह राजाका निमक खानेवाले कर्मोकी सेनाएं मोहके मरने पर भी युद्धक्षेत्रमें डटी हैं। १९ वें में ६० " दल थे उनमेंसे सुक्ष्मलोभ, बज्रनाराच और नाराचके नष्ट हो .... जानेसे केवल ६७ ही द अति ग्लानित अवस्थामें रहगए हैं। मोह रानाके भंडारमें अब भी १०१ सेनादलः पड़ा है। १०वें में १०२ का था उनमेंसे संज्वलन लोभके चले जाने पर १०१, .. प्रकृतियोंके दलोंका ही सत्त्व है । इस समय इसकी एकाग्रता " . इसके चित्तको जो साहस, निर्मलता और एकाग्रता प्रदान कर .. रही है उसका अनुभव उसी ही वीरको है. जो कोई अपने शत्रुका .. संहार कर डाले और फिर यह भरोसा हो कि वह सदाके लिये.. विजयी हो गया तो उसके हर्षका क्या.ठिकाना ! नित: मोहके .. रहते हुए कर्मों की सेनाएं आ. आकर चेतन रानाकी शक्तियोंको दबाती थीं और इसको अपने स्वरूपसे गिराकर पर-पुलजनित पर्यायों व अवस्थाओंमें वावला: कर देती थीं, वह · मोहराना नवं . चला गया तब आत्माके: प्रभुत्वका क्या ठिकानां ? यह वीरधीरः ..
आत्मा अपनी शक्तिको सम्हाले हुए. पूर्ण एकचित्ततासे अपने गढ़: :.. ‘पर खड़ा हुआ बड़ी ही धीरता और स्वप्रभावसे अपने ही अंतनंगमें स्वसमरानंदका उपभोग करता हुआ दीप्तमान हो रहा है।..
मोहविनयी द्वादश गुणस्थानावरोही वीरात्मा निर्विकल्पः . : समाधिकी एकतारूपी, द्वितीय शुक्लध्यानकी अति विशुद्ध परिणा-:..