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स्वसंमरानन्द
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डाओको युद्ध करते हुए खेद होता है, मनमें कषायकी कलुपता होती है. पर इस वीरको न खेद है न कलुषता है; किन्तु इस सर्वके विरुद्ध इसके परिणामोंमें अपूर्व शांति और आनन्द है । 'जिस स्वानुभूति - तियाके लिये इस वीरका इतना परिश्रम है उसीमें गाढ़ रुचि व प्रेमको क्षण - २ में आनन्द सागर में निमग्न रखता है। यह लीन है - अपने कार्यमें कुशल हैं, तौ भी मोहके, संज्वलन कषाय रूपी बीरोंने जो अभी २ अति निर्बल हो गए थे अपनी तेजी दिखलाई और ऐसी चपेट मारी कि उनके जोरके. सामने चेतनके उज्ज्वल परिणाम दवे और वह यकायक छठे गुणस्थान में आगया । यद्यपि यहां उतनी दृढ़ता नहीं है, तौभी चेतन अपने कार्य में मजबूत है। यहांसे नीचे गिरानेका यत्न शत्रुके दल भले ही करें पर इसके दृढ़ दलोंके सामने उनका जोर नहीं चलता । चेतन जत्र अपने दलोंका शुमार करता है तो देखता है कि अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्यं और अपरिग्रह यह पाँच बड़े २ सेनापति अपनी वीरतामें किसी तरह कम नहीं है ।
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निज सुख सत्ता चैतन्य बोध रूपी निधिको किसी भी प्रकारसे भ्रष्ट न होने देनेवाला अहिंसा महाव्रत है । सत्य यथार्थ निज स्वरूपकी निर्मलता को कायम रखनेवाला सत्य महाव्रत है । निज विभूतिके सिवाय अन्य किसीके कोई गुण व पर्यायको नहींचुरानेवाला अस्तेय महाव्रत है । निज ब्रह्मस्वरूप में थिरता के साथ चलनेवाला ब्रह्मचर्य महात्रत है । और पर भावों का त्यागरूप