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________________ स्वसमरानन्दः । (8.८). कोड़ाकोड़ी सागर के भीतरकी ही रह जाती है । देशना दिवसे ऐसा शुभ असर होता देख परम दयालु विद्याधरगुरु 'प्रायोग्यलब्धि' को भेजते हैं । इस सखीके बलसे कर्म- सेना और भी, " अपने जोर और स्थितिको घटा लेती है । आत्माराम अपने C . 2 ८ साहसको बढ़ाता है और इस सखीके पूर्ण बलको पा अनन्तानु बन्धी कोध म० मान, अ० माया अ० लोभ तथा मिध्यात्वं, सम्युक्त मिथ्यात् और सत्यक् प्रकृति मिथ्यात- इन सात योद्धाओं के बलको नाश करनेका दृढ़ संकल्प कर करणलब्धि' की ज्यों ही सहायता पाता है, त्योंही समय २ पर मोहकी सेनाको दबाएं: जाता है और अपने पास विशुद्ध परिणामोंकी सेनामको बहाए: आता है । अंतर्मुहूर्त के इस प्रयत्नसे वह आत्मवीर अति शीघ्र ही इन सातोंको दवा उपशमसम्यक्त की श्रेणीपर चढ़कर अपनी विजयका डंका बजाता और पुनः शिव- रमणीमें आशक्त हो जगत्के क्षणिक सुखोसे बाह्य स्वसमरानन्दका अनुभव लेता हुआ सुखी होता है । " (२५) " श्रमीका साहस जो इसने मोहनृपकी सेनाके आत्मवीरको मोहनृपके जंजाल से बचनेके लिये जो कष्टउठाना पडते हैं उनका अनुभव उसे ही है । धन्य है इस परि बलको एक दफे दबा लिया था और जो अपने स्थान पर पहुंचनेके निकट ही था, परं उस मोहके तीव्र धोके में आजानेपर यह ऐसा गिरा कि महा मिध्यांत शत्रुके आधीन हो गया, पर इसने तब भी हिम्मत न हारी और इस प्रकार दृढ़ता रखने से म तमें यह सम्यक्ती - . 4 t
SR No.010057
Book TitleSwasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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