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________________ स्वसमरानन्द । अपने शुद्ध परिणामरूपी सेनामोंके जोरसे मोहशत्रुकी ३६ प्रकारकी सेनाओं नवीन आगमन रोक दिया है और एकाएक आठवेसे नवमें गुणस्थानमें भागया है। जिन शुन्ह परिणामों के द्वारा चारित्रमोहनीके बलोंको निर्मूल करने के लिये इस वीरने सातवें दरवाजेमें करणलब्धिका प्रारंभ किया था उन शुद्ध परिणामोंकी जो भपूर्व छटा पाठवीं श्रेणी में थी उससे मति विलक्षण महिमा इस समय इन शुद्ध परिणामरूपी दलोंकी हो गई है। इस अनिवृत्तिकरणमें नितने समय इस मामवीरको ठहरना होता है उतने समयके लिये प्रति समय अद्भुत ही अद्भुत शुद्ध परिणामोंकी सेना विद्याधर गुरुद्वारा प्रेषित की आरही है। इस श्रेणीकी कुछ ऐसी गति है कि जितने वीर, योदा, विद्याधर गुरुकी कृपासे मोह-शत्रुसे युद्ध करते २ एक ही समयमें इसमें मानाते हैं उन सबके लिये एकसी ही शुद्ध परिणामोंकी सेना सहायताके लिये आ जाती है। इन परिणामरूपी योद्धाओंकी आहट पाते ही नीचे लिखी ३६ प्रकारकी सेनाओंको मोह रानाने भेजना बंदकर दिया है। निद्रा, प्रचला, तीर्थकर, निर्माण, प्रशस्त, विहायोगति, पंचेन्द्रिय जाति, तैजस शरीर, कार्माणशरीर, आहा. रक शरीर, माहारक अंगोपांग, समचतुल संस्थान, वैक्रियक शरीर, बैंक्रियक अंगोपांग, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, मगुरुलघुत्व, उपघात, परघात, उच्छास, त्रप्स, बादर पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुमग, सुस्वर, मादेय, हास्य, रति, जुगुप्ता, भय । अब यहां केवल १२ प्रकृतियोंकी ही सेना मोहद्वारा प्रेषित की जाती है। आठवीं श्रेणीमें जब ७२ प्रकृतियोंकी सेना
SR No.010057
Book TitleSwasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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