________________
स्वसमरानन्द ।
(३४)
"
यद्यपि ये सहकारी हैं तथापि इस सावधान सम्यक्ती वीरको इनका भी विश्वास नहीं । वह इनको भी अपना विरोधी हीं जानता है। आत्म-वीरके ज्ञानकी अपेक्षा अब इसके मुकाबले में १२ प्रकारकी सेनाएं आ रही हैं। छठी श्रेणी में ८१ प्रकारकी सेनाएं.. -मुकाबले में युद्ध कर रहीं थीं । जब आहारक शरीर आ हारक अंगोपांग, निद्रा निद्रा, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धि - इन ५ ने मुकाबला करना बन्द कर दिया है, केवल ७६ ही सामने खड़ी हैं । यद्यपि मोहके युद्ध-स्थलमें अभीतक १४६ प्रकारकी सेनाएं बैठी हुई हैं। ऐसी हालत होनेपर भी इस साहसीको धर्मध्यानके चारों पांयोंका पूरा १ २ल है। जब आज्ञा विचय, अपायविचय, विपाकविचंय और संस्थानविचय तथा :: स्थान विचय ध्यानके सहकारी पिंडस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रुपातीत ध्यानकी तलवारें चमकती हैं तब मोहकी सारी फौज कांप जाती है और इधर आत्म-वीरकी वीतराग परिणतिरूपी सेनाकी आवली में अत्यंत तीक्ष्ण वेग होता है, उत्साहकी उन्मतता बढ़ती जाती है । इसीके जोरसे अब यह उपशम श्रेणी में चढ़ मोहके दलोंको मूर्छित बनानेका प्रयत्न करनेको उद्यमंत्रत हो गया है । .
"
4
धन्य है आत्मज्ञानकी महिमा और तिाकी प्राप्तिकी अभिलाषा ! यह धीरवीर मुनि अनेक परीषहोंको सहता है । अनेक प्रकार देव, मनुष्यं, तिथेच व आकस्मिक घटनाओंद्वारा पीड़ित किये जाने पर भी अपने कर्तव्यसे जरा भी विमुख नहीं होता है । आपमें आप ही आपसे ही आपको आपके लिये
-
•
1
.