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स्वममरानन्द |
भी खेद न मान स्वसमरानंदके विशाल सुखमें कलोलें लेता हुआ अपने भाशाके पुष्पोंकी मालाकी सुगंधी ले लेकर संतोषित हो रहा है ।
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(५)
परमदयालु विद्याधरकी प्रेरणासे जागृत हुआ वह वीर आत्मा मोह शत्रुसे युद्ध करनेके काय में खूब दिल खोलकर तन्मय हो रहा है। अपूर्वकरणकी लब्धिके पीछे मब इसने अनिवृप्तिकरणकी कब्धि प्राप्त करली है। अब इसके फौनके सर्व सिपाही बदल गए हैं। एक विलक्षण जातिकी परम बलवान सेना इसके पास समयर आ रही है । यह सेना बड़ी बलिष्ठ है । - इस प्रकारकी सेना उन्हीं सुभटोंको प्राप्त होती है जो उन पांचों दुष्टोंको बिलकुल दवा ही देवेंगे । यह मोह शत्रु बड़ा क्रूर है | इसने अनंते जीवोंको कैदमें डाल रखा है। परम कृपालु विषाधरकी कृपा से यदि कोई एक व दो मादि अनेक आत्माएं भी सुचेत हों, इससे युद्ध करने लग जाय और अनिवृत्तिकरणविकी शक्तिका लाभ करें तो सर्व ही जीव एकसी ही बलवान परिणामरूपी सेनाको समय २ पाते हुए एक साथ ही इन पांचों दुष्ट सुमोको एक अंतर्तके भीतर ही दबा देते हैं । इस वीर आत्मा के युद्धके प्रतापसे जो मोह शत्रुकी शत्रुता द्वारा १४३ ( तीर्थंकर, आहारक शरीर, आहारक अंगोपांग, सम्यक्त मोहनी, मिश्र मोहनी सिवाय ) कर्म प्रकृति वीरोंकी सेना अनादिकाल से उस आत्माको घेरे हुए दुःखी किये हुये थी उनमें के बहुतसे वीरोंको इसने प्रायोग्यलब्धि प्राप्त करनेपर ३४ बंधापसरणोंके द्वारा ऐसा
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