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________________ ६८ राजपूताने के जैन-वीर रावल समरसिंह ने अपने राज्य में जीव-हिंसा रोक दी थी। समरसिंह की माता जयतलदेवी की जैनधर्म पर श्रद्धा थी, अंतः उसके आग्रह से या उक्त सूरी के उपदेश से उसने ऐसा किया हो यह सम्भव है। .. .... ... : ... उक्त दो अवतरणों से प्रकट है कि सणी जयतल्लदेवी जैनधर्मावलम्बनी थी, उसने समरसिंहजैसे.शूरवीरको प्रसव किया था जो ऐतिहासिक क्षेत्र में अपनी वीरता के लिये काफी प्रसिद्ध है। २० अक्तूबर सन् ३२...::. . : .:. . कमाशाह. . वानरेश राणा संग्रामसिंह के पराक्रमकारी पुत्र रत्नसिंहः के मंत्री कर्माशाह (कर्मसिंह) ने अपने जीवन में क्या: क्या लोकोत्तर कार्य किये, इसका कोई विवरण उपलब्ध नहीं होता। केवल. एपिमाफिया इण्डिका -31:४२-४ा में उसके सम्बन्ध का शत्रुञ्जयतीर्थः (:काठियावाड़ में पालीतारणा के पास )... पर से मिला हुआ. एक शिलालेख प्रकट हुआ था। जिसकी कि मुनि जिनविजयजी ने अपने "प्राचीन जैन-लेखसंग्रह (द्वितीय भाग) पृ०:१-७ में अंकित किया है । यह लेख शत्रुञ्जया पर्वत के ऊपर बने हुये मुख्य मन्दिर के द्वार के लाई ओरः एक स्थस्म पर मोढ़ी शिला: पर संस्कृत:-लिपि में खुदा हुआ है। इस लेख में। * राजपूताने का इ० पृ० ४७७ ४७७
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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