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________________ ४८ राजपूताने के जैन-चीर केशरियानाथ (ऋषभदेव)- "उदयपुर से ३९ मील दक्षिण में खैरवाड़े की सड़क के निकट कोट' से घिरे हुये धूलदेव नामक कृस्वे में ऋषभदेव का प्रसिद्ध जैनमन्दिर है। यहाँ की मूर्ति पर केशर बहुत चढ़ाई जाती है । जिससे इनको केसरियाजी या केसरियानाथ भी कहते हैं। मूर्ति काले पत्थर की होने के कारण भील लोग इनको कालाजी कहते हैं। ऋषभदेव विष्णु के २४ अवतारों में से.. आठवें अवतार होने से हिन्दुओं का भी यह पवित्र तीर्थ माना जाता है। भारतवर्ष के श्वेताम्वर तथा दिगम्बर जैन एवं मारवाड़, मेवाड़, डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, ईडर आदि राज्यों के शैव, वैष्णव आदि यहाँ यात्रार्थ आते हैं। भील लोग कालाजी को अपना इष्टदेव मानते हैं और उन लोगों में इनकी भक्ति यहाँ तक है कि केसरियानाथ पर चढ़े हुये केसर को जल में घोलकर पी लेने पर वे चाहे जितनी विपत्ति उनको सहन करनी पड़े-झूठ नहीं बोलते।" .. "हिन्दुस्तान भर में यही एक ऐसा मन्दिर है, जहाँ दिगम्बर तथा श्वेताम्बर जैन और वैष्णव, शैव, भील एवं तमाम सच्छूद्र जान कर समान रूप से मूर्ति का पूजन करते हैं। प्रथम द्वार से, जिस पर नझारखाना बना है, प्रवेश करते ही बाहरी परिक्रमा का __+यहाँ पूजन की मुख्य सामग्री केसरही है और प्रत्येक यात्री अपनी इच्छा- . नुसार कैसर चढ़ाता है। कोई कोई जैन तो अपने बचों आदि को कैसर से तोलकर वह सारी केसर चढ़ा देते हैं। प्रात:काल के पूजन में जल प्रक्षालन, दुग्ध प्रक्षालन, .. अतर लेपन आदि होने के पीछे केसर का चढ़ना प्रारम्भ होकर एक बजे तक . चढ़ती ही रहती है। . .
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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