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________________ मेवाड़-परिचय मुख्य छोटी चित्रशाली, सूरज चौपाड़, पीतमनिवास, मानिकमहल, मोती महल, चीनी को चित्रशाली, दिलखुशाल, बाड़ीमहल ( अमरविज्ञास) मुख्य हैं। पुराने महत्तों के आगे जी तर्ज का शंभु-निवास नाम का नया महल और उसके निकट महाराणा फतहसिंह का बनवाया हुआ शिवनिवास नामक सुविशाल महल लाखों रुपयों की लागत से तैयार हुआ है । राजमहल शहर के सब से ऊँचे स्थान पर बनाये जाने के कारण और इनके नीचे ही विस्तीर्ण सरोवर होने से उनकी प्राकृतिक शोभा बहुत बढ़ी चढ़ी है" का " 20 शहर में अनेक देखने योग्य स्थान हैं जिन्हें यहाँ स्थानाभाव के कारण नहीं लिखा जा सकता । यहाँ की मनुष्य संख्या सन् १९३१ में ४४०३५ के करीब थी । दिगम्बरों के ८ शिखरवन्द मंदिर तथा ५ चैत्यालय हैं और उन सबमें ६८५ के करीब धर्मशास्त्र हैं। श्वेताम्बरों के छोटे बड़े सय ३५ मन्दिर हैं । इन में कितने ही मन्दिर अत्यन्त सुन्दर बने हुए हैं। + राजपूताने का ६० पृ० ३२९ । + दि० जैन डिरेक्टरी पृ० ४६९ । + जैन तीर्य गाइड पृ० १५९ । उदयपुर राज्य में अनेक प्राचीनं स्थानं देखने योग्य हैं किन्तु यहाँ स्थानाभाव के कारण मान्य श्रोमाजी कृत राजपूताने के इतिहास से केवल प्राचीन जैनमन्दिरों का उल्लेख किया जाता है
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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