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________________ का लोकमत श्रीअयोध्याप्रसाद गोयलीय कृत "मौर्य साम्राज्य के जैनवीर" दिसम्बर सन् ३२ में प्रकाशित हुआ था। इन दो-तीन महिनों में ही उसका काफी आदर हुआ है। उस पर अनेक विद्वान् और समाचार पत्रों ने अपनी सम्मति प्रगट की हैं, जिनमें से कुछ सम्मतियाँ संक्षेप में इस प्रकार है:भूमिका-लेखक साहित्याचार्य पं० विश्वेश्वरनाथ रेड, जोधपुर: "इस पुस्तक की भाषा मनकोफड़कानेवाली, युक्तियाँ सप्रमाण और ग्राह्य तथा विचारशैली साम्प्रदायिकता से रहित, समयोपयोगी और उच्च है। हमें पूर्ण विश्वास है कि इसे एक बार आद्योपान्त पढ़ लेने से केवल जैनों के ही नहीं, प्रत्युत मारतवासी मात्र के हत्पट पर अपने देश के प्रतीत गौरव के एक अंश का चित्र अंकित हुये विना न रहेगा। ऐसा कौन अभागा भारतवासी होगा, जो अयोध्याप्रसादजी गोयलीय की लिखी भारत की करीब तादेवाईससौ वर्ष पुरानी इस सारगर्मित और सच्ची गौरव-गाथा को सुनकर उत्साहित न होगा । पुस्तक हर पहलू से उपादेय और सप्रमाण है"। प्रोफेसर हीरालाल एम. ए. एल. एल-बी. अमरावती:. "इतिहास और साहित्य दोनों दृष्टियों से पुस्तक उपयोगी है। कठिन परिस्थिति में पड़ कर भी गोयलीयजी उत्तम साहित्य सेवा
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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