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________________ 'सिंहावलोकन . विज्ञप्ति, उपाश्रयों और जैन मन्दिरों को अब तक रियासतों द्वारा सहायता मिलती रहना, उस अतीव काल में की गई जैनियों को सुकृतियों का घोतक है। निमंत्रण पर उक आचार्य ने उदयपुर में चातुर्मास किया। चतुर्मास समाप्त होने के वक्त एक रात दलबादल महल में विश्राम किया, तब महराणा जगतसिंह । जी नमस्कार करने को गये और भाचार्य के उपदेश से निम्नलिखित चार बातें स्वीकार की। (क) उदयपुर के पीछोला सरोवर और उदयसागर में मछलियों को कोई न पकड़े। (ख) राज्यभिषेक वाले रोज जीव-हिंसा बन्द (ग) जन्म-भास और भाद्रपद में जीव-हिंसा बन्द । (घ) मचीददुर्ग पर राणा कुम्मा द्वारा बनवाये गये जैन चैत्यालय का. पुनरुद्धार। इन्हीं विजयदेवसूरि को जहाँगीर बादशाह ने "महातयां" पदवी प्रदान की थी। २-दूसरी मेवाड़ी विज्ञप्ति निम्न प्रकार है : स्वरत श्री मगसुदा ना म्हा सुभ सुयाने सरव औपमालाअंक भटौरकजी महाराज श्री हीरवजेसूरजी चरण कुमला भेण स्वरत श्री वजे कटक चांवडरा डेरा सुथाने महाराजाधिराज श्री राणा प्रतापसिंघजी ली: पो लागणो बचसी. अमरा समाचार भला है आपरा सदा भला छाइले आप बड़ा है पूजणीक है सदा करपा . राखे 'जीसु ससट (श्रेष्ठ) रखावेगा अप्रं! आपरी पत्र अणादना म्हे आया नहीं सो करपा कर लपावेगा । श्री बड़ा हनूर री वगत पदार वो हुबो जीमें भमसुं पाला पदारता पातसा अकन जी ने जैनाबाद म्हे ग्रानं रा प्रतिबोद दी दोजीरो चमत्कार मोटो बताया जीव हसा (हिंसा) सरकली (चिड़िया) नया नाम पपेरु
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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