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________________ आबू पर्वत परः के प्रसिद्ध जैनसन्दिर ३२५. " प्रथम ताक में चार मूर्तियें हैं। पहली आचार्य उदयप्रभ की, दूसरी आचार्य विजयसेन की तथा तीसरी और चौथी चण्डप और उसकी स्त्री चाँपलादेवी की है। इस मन्दिर के बनाने वाले इश्जीनियर का नाम शोभनदेव था। इस तरह अपने सारे कुटुम्ब का स्मारकं चिन्ह बनाकर उनके नाम को अमर करने वाला, तेजपाल के सिवाय शायद ही कोई दूसरा पुरुष हुआ हो । इसी मन्दिर में वि० सं० १२८७ फाल्गुण वदि ३ रविवार का एक दूसरा शिलालेख लगा है । इसमें यहाँ के वार्षिकोत्सव आदि की व्यवस्था का वर्णन है । तथा साथ ही उसमें सहायता देनेवाले महाजनों के नाम और गाँव भी लिखे हैं । पूर्वोक्त उपदेशतरङ्गिणी में इस मन्दिर के रचना का वृतान्त इस तरह लिखा है: : एक समय बहुत से साथियों सहित वस्तुपाल और तेजपाल धवलक (धौलका) गाँव से हडाला में आए। वहाँ पहुँचने पर जब उनको विदित हुआ कि आगे रास्ते में लुटेरों का भय है, तब उन्होंने अपने विश्वासी पुरुषों सहित आपस में विचार कर रात्रि . के समय अपने धन को तांबे के कलसों में भर दिया और उन कलसों को पृथ्वी में गाड़ने के लिये तालाब के निकट एक गेहूं के खेत में ले आए तथा वहाँ पहुँचकर एक खेजड़ी के वृत्त के नीचे खोदना आरम्भ किया । वहाँ पर वस्तुपाल के भाग्य से बड़ा भारी खजाना निकला । इसको देखकर सारे पुरुष : विस्मित हो गये । ī "
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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