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________________ २४४ .. राजपूताने के जैनवीर . . सगर ने आकर उन दोनों का आपस में मेल करा दिया तथा वादशाह से दण्ड लेकर उसने मालवा और गुजरात देश पुनः वादशाह · को वापिस दे दिये, उस समय राणाजी ने सगर की इस बुद्धि- . मत्ता को देखकर उसे मंत्रीश्वर का पद दिया और वह (सगर) देलवाड़े में रहने लगा तथा उसने अपनी बुद्धिमत्ता से कई एक शूरवीरता के काम कर दिखाये। २. बोहित्य:· सगर के बो.हत्थ, गङ्गदास और जयसिंह नामक तीन पुत्र थे, इनमें से सगर के पाटपर उसका बोहित्य / नामक ज्येष्ठ पुत्र मंत्री-. श्वर होकर देलवाड़े में रहने लगा, यह भी अपने पिता के समान । बड़ा शूरवीर तथा बुद्धिमान था। .... 'बोहित्य की भार्या वहरंगदे थी, जिस के श्रीकरण, जैसे, जयमल्ल, नान्हा, भीमसिंह, पदमसिंह, से.मजी, और पुण्यपाल नामक . आठ पुत्र थे और पद्मावाई नामक एक पुत्री थी। .... ३. श्रीकरण:. के समघर वीरदास हरिदास और उधण नामक चार पुत्र थे।. यह (श्रीकरण) बड़ा शूरवीर था, इसने अपनी भुजाओं के बल से.. मच्छेन्द्रगढ़ को फतह किया था,एक समय का प्रसंग है कि-बाद : शाह का खजाना कहीं को जारहा था, उसको राणाश्रीकरण ने लूट. बोहित्य नै चित्तौड़ के राणा रायमलं की सहायता में उपस्थित होकर बादशाह से युद्ध किया; और उसे भगा दिया था। :
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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