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________________ बच्छावतों का उत्थान और पतन २४३ ་ 1 सिंह जो कि अपुत्र था, मृत्यु को प्राप्त होगया, तथा मरने के समय वह सगर को अपना उत्तराधिकारी बना गया। अतएव राणा भीमसिंह को मृत्यु के पश्चात् १४० ग्रामों सहित सगर देलवाड़े का स्वामी हुआ और उसी दिन से वह राणा कहलाने लगा, उसका श्रेष्ठ तपस्तेज चारों ओर फैल गया, उस समय चित्तौड़ के राणा रतनसी पर मालवपति मुहम्मद बादशाह की फौज चढ़ आई, तंब राणा रतनसी ने सगर को शूरवीर जानकर उसे अपनी सहायता को बुलाया | युद्ध - आमंत्रण सुनते ही सगर अपनी सेना को लेकर राया। रतनसी की सहायता को पहुँच गया । बादशाह, सगर के सामने न ठहर सका और प्राण बचाकर भाग निकला, तब मालवा देश को सगर ने अपने कब्जे में करलिया । कुछ समय के पश्चात् गुजरात के मालिक वाहिलीय जात अहमद, वादशाह ने राणा सगर को कहला कर भेजा कि "तू मुझको सलामी दे और हमारी नौकरी को मंजूर कर, नहीं तो मालवा देश को मैं तुम से छीन लूंगा " स्वाभिमानी सगर भला यह बात कैसे स्वीकार कर सकता था ? परिणाम यह हुआ कि सगर और बादशाह में घोर युद्ध हुआ, आखिरकार बादशाहं हारकर भाग गया और सगर ने समस्त गुजरात को अपने अधिकार में करलिया । इस तरह पराक्रमकारी सगर मालवा और गुजरात का अधिपति होगयां । कुछ समय के बाद पुनः किसी कारण से गोरी बादशाह और राणा रतनसी में परस्पर विरोध उत्पन्न होगया और बादशाह चित्तौड़ पर चढ़ आया, उस समय राणाजी ने शूरवीर सगर को बुलायां और
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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