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सिंघवी इन्द्रराज
२३७ टॉड साहय के कथनानुसार इस विजयोपलक्ष में इन्द्रराज सिंघवी मारवाड़ के प्रधान सेनापति-पद से विभूषित किया गया।
राज्य की व्यवस्था ठीक कर लेने पर महाराज मानसिंह ने अपने फुटम्बी बीकानेर नरेश से बदला लेने के लिए बारह हजार सेना के साथ प्रधान सेनापति इन्द्रराज तथा अन्य सरदारों के साथ युद्ध के लिए प्रस्थान किया। वापरी नामक स्थान में दोनों सेनाओं का युद्ध हुआ । बीकानेर के महाराज इस युद्ध में परास्त होकर अपनी रक्षा करने के लिए राजधानीको चले आये। बीकानेर महाराज के भागते ही महाराज मानसिंह के प्रधान सेनापति इन्द्रराज आदि उनका पीछा करते हुए गजनेर नामक स्थान में
आ पहुँचे, अन्त में विवश होकर बीकानेर महाराज को सन्धि करनी पड़ी और युद्ध की हानि के पूर्ति स्वरूप दो लाख रुपया तथा फलौदी का वह परगना जिसे उन्होंने जयपुर महाराज की हिमायत करके अधिकार कर लिया था लौटाना पड़ा।
सिंघवी इन्द्रराज की सेवाओं से प्रसन्न होकर महाराजा मानसिंह ने उसे राज्य के सम्पूर्ण अधिकार सौंप दिये थे। जैसा कि महाराजा मानसिंहजी द्वारा रचित मारवाड़ी भाषा के निम्न दोहे से प्रकट होता है :
पैरी मारन मीरखां, राज काज इन्दराज ।
महतो शरणों नाथ रे, नाथ सँवारे काज ।। . इन्द्रराज की इस उन्नति से उनके पुराने शत्रु और भी जलभुन कर खाक हो गये। वे सिंघीजी की इस उन्नति को न देख सकें।