SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.ma-w -.. २० . “राजपूताने के जैन-वीर : १३. मेहता वैरसीजी: (नं ११ सुन्दरसीजी के पुत्र) यह रूपनगर के महाराज मानसिंह के सं० १७४२ में प्राईवेट सेक्रेटरी रहे। mmirmirrorm सिंहासन के लोभ को न दवा सके । शाहजहाँ के गिड़गिड़ा कर अनुरोध करने पर मारवाड़-केसरी . राजा यशवन्तसिंह तीस सहस्र राजपूत-सेना लेकर पितद्रोही और गजेब का आक्रमण रोकने के लिए उज्जैन जा पहुँचे । किन्तु कूटनीतिज्ञ औरंजेव के षड्यन्त्र के सामने उनकी वीरता काम न आई, अन्त में उन्हें रणक्षेत्र का परित्याग करना पड़ा। . राजा यशवन्तसिंह का शिशोदिया राजकुमारी के गर्भ से जन्म हुआ था और शिशोदिया कुल की एक वीरबाला के साथ विवाह हुआ था । पवित्र शिशोदिया कुल में विवाह कर पाने पर राजपूतं राजा अपने को पवित्र और कृतार्थ समझते थे । राजा यशवन्तसिंह की स्त्री जैसे ऊँचे कुल में उत्पन्न हुई थी उसी प्रकार ऊँचे गुणों और अलंकारों से विभूषित थी । जब उसने उज्जैन के युद्ध का वृतान्त सुंना कि उसके पति की प्रायः समस्त सेना नष्ट हो गई है और वह शत्रु का पराजय न कर रण-भूमि से चला आया है। तब उसको विषम क्रोध और दारुण दुःख हुआ। वह मारें आत्मग्लानि के रो पड़ी और उसी आवेश में सोचने लगी:-.. __ . "नजाने मेरे कौन से पापकर्म का उदय है, जो मुझे ऐसा क्षत्रिय कुल-कलंकी पति मिला। अच्छा होता जो मैं विवाही न जाती, कायरंपनि तो न कहलाती। विषपान करलुंगी जीते जी.
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy