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________________ जं धपुर · राजवंश के जैनवीर मानसिंह आदि के समय में मुहरणोंत वंशी मुसाहिव रहे हैं । महाराज रायसिंह वि०सं० १७३२ आषाढ़ बदी १२ को दक्षिण के गाँव सोलापुर में दो चार घड़ी बीमार रहकर अचानक मरगये। तब उनके मुत्सद्दियों आदि ने उनके गुजराती वैद्य से पूछा कि रायसिंह अचानक कैसे मरगये ? इस पर उसने गुजराती भाषा में उत्तर दिया - "करमां नो दोष छे". (भाग्य का दोष है) जिस का अर्थ रायसिंह के मुसाहिबों ने यह समझा कि "करमा' (करमसी) ने इनको मारा है" फिर उस (करमसी) पर विष देने का झूठा सन्देह कर उसको वहीं जिन्दा दीवार में चुनवा दिया गया; और नागौर लिखा गया कि इसके जो कुटम्बी वहां हैं, उन सब को कोल्हू में डालकर कुचल डालना | इस हुक्म के पहुँचने पर करमसी पुत्र परतापसी अपने कई रिश्तेदारों के साथ मारा गया और करमसी की दो त्रियों ने अपने पुत्र सावंतसिंह के साथ भाग कर किशनगढ़ ( कृष्णगढ़, राजपूताना ) में शरण ली । फिर वहाँ से वे लोग बीकानेर में जा रहे ! · २०५ नैणसी के ग्रन्थ मुहणौत नैणसी जैसा वीर प्रकृति का पुरुष था, वैसा ही विद्यानुरागी, इतिहास प्रेमी और वीर कथाओं पर अनुराग रखने वाला नीति निपुण पुरुष था । उसका मुख्य ऐतिहासिक ग्रन्थ " ख्यात" नाम से प्रसिद्ध है । यह प्रन्थ रायल अठपेजी हजार * * राजपूताने' की भाषा में 'ख्यांत" (स्थांति) का अर्थ 'इतिहास " है ।
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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