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________________ जोधपर-राजवंश के जैन चीर २०३ . महाराज को अपनी फौज वापिस लेनी पड़ी। संवत् १७२३ में महाराज जसवन्तसिंह औरंगाबाद में थे और मुहणोत नैणसी तथा उसका भाई सुन्दरदास दोंनों उसके साथ थे। किसी कारण वशात् महाराज उनसे अप्रसन्न हो रहे थे, जिससे पौप सुदी ९ के दिन दोनों को कैद कर दिया । महाराज के अप्रसन्न होने का ठीक कारण ज्ञात नहीं हुआ। परन्तु जन श्रुति से पाया जाता है कि नैणसी ने अपने रिश्तेदारों को बड़े २ पदों पर नियत कर दिया था और वे लोग अपने स्वार्थ के लिये प्रजा पर अत्याचार किया करते थे। इसी बात के जानने पर महाराज उससे अप्रसन्न होरहे थे। वि० सं० १७२५ में महाराज ने एक लाख रुपये दण्ड लगाकर उन दोनों भाइयों को छोड़ दिया, परन्तु इन्होंने एक पैसा तक देना स्वीकार नहीं किया। इस विषय के नीचे लिखे हुये दोहे राजपूताने में अब तक प्रसिद्ध हैं:___ लाख लखारा नीपजे, पड़ पीपल री साख । नटियो भूतो नैणसी, ताबों देण तलाक ॥१॥ लेसो पीपल लाख, लाख लखारा लावसो । तांवों देण तलाक, नटिया सुन्दा नैणसी ॥२॥ * नैणसी और सुन्दरदास के दण्ड के रुपये देना अस्वीकार ': लखारा लाडेरों के यहां, साख-शाखा,नटिया-नंटगाया, ताबों तांबाका एक पैसा देण-देना, तलाक-अरवीकार किया,लेसो-लोगे,लावसो-लामोगे .
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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