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________________ राजपताने के जैन-चौर आज्ञादी । इसपर वह जोधपुर आया और वहाँ से सैन्य सहित चढ़कर उसने पोहकरण में डेरा डाला । इसपर सवलसिंह का पुत्र अमरसिंह, जो पोहकरण जिले के गावों में था, भाग कर जैसलमेर चला गया। नैणसी ने उसका पीछा किया और जैसलमेर के २५ गाँव जला कर, जैसलमेर से तीन कोस की दूरी के गाँव वासणी में वह जा ठहरा । परन्तु जब रावल किला छोड़ कर लड़ने को न आये, तब नैणसी आसणी कोट को लूटकर लौट गया। वि० सं० १७११ में पंचोली बलभद्र राघोदासोत (राघोदासका पत्र) की जगह नैणसी का छोटा भाई सुन्दरदास महाराजजसवन्तसिंह का खानगी दीवान नियत हुआ। वि०सं० १७१३ में सिंघलवाघ पर महाराज जसवंतसिंह ने फौज भेजी। उस समय वाघ ४०१ राजपूतों के साथ लड़ने को सुसजित होकर बैठा था। महाराज की फौज में ६९१५ पैदल थे, जिनके दो विभाग किये गये। एक विभाग का, जिस में ३५४३ सैनिक थे, अध्यक्ष राठौड़ लखधीर विट्ठलदासोत (विट्ठलदास का बेटा) था। दूसरे विभाग के, जिस में ३३७२ सैनिक थे, अध्यक्षों में मुख्य मुहणोत सुन्दरदास था। सिंग़लों से लड़ाई हुई, जिसमें बहुत से आदमी मारे गये, और. महाराज की विजय हुई । वि० सं० १७२० में महाराज जसवन्तसिंह की सेना ने वादशाह औरंगजेब की तरफ से प्रसिद्ध मराठी वीर शिवाजी के आधीन के गढ़ कुंडाणे पर चढ़ाई कर गढ़ पर मोरचे लगाये । इस चढ़ाई में सुन्दरदास जयमलोतं मरना निश्चय कर लड़ने को गया था, परन्तु गढ़ वालों के अरावों की मार से
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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