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________________ १८० राजपूताने के जैन-चीर २०. सांडेरायः___ यह यशोभद्रसूरि द्वारा स्थापितः संद्रक जैनगच्छ का मूल स्थान है। यहाँ श्रीमहावीर स्वामी का जैन मन्दिर है । जिसके द्वार पर एक लेख है कि सं० १२२१ माघ वदी २ को केल्हणदेव राजा . की माता आणलदेवी ने राजा की सम्पत्ति में से श्रीमहावीरस्वामी की पूजा के लिये दान किया था। यह राष्ट्रकुटवंशी सहुला की पुत्री थी। सभा मंडपके खम्भे पर चार लेख हैं-१ है,सं०१२३६ कार्तिक वदी २ वुधे कल्हणदेव के राज्य में थंथा के पत्रं रल्हाका और पल्हा ने श्रीपार्श्वनाथजी के लिये दान दिया। . २१. कोरटा:- . . सांडेराय से दक्षिण-पश्चिम १६ मील । यहाँ ३ जैन-मन्दिर हैं, जो १४ वीं शताब्दी के हैं। २२. जालेर. नगर जि० जालोर, जोधपुर से दक्षिण ८० मील । यहाँ एक किला है, उसमें तोपखाना तथा मसजिद है, जो.जैन और हिन्दू मन्दिरों के ध्वंसों से वनाई गई है । यहाँ बहुत से लेख हैं व तीन जैन मन्दिर श्री आदिनाथ, महावीर व पार्श्वनाथ के हैं। २३. केकिंदा.. - मेड़ता से दक्षिण-पश्चिम १४ मील । शिव-मन्दिर के पास एक जैन-मन्दिर श्री पार्श्वनाथ का है । इसके खंभे पर लेख है। . . २४. चाइल:-- . बागोदिया से उत्तर ४ मील, यहाँ १३ वीं शताब्दी का एक श्री पार्श्वनाथ का जैन-मन्दिर है।
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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