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________________ २७३ मारवाड़-परिचय का वास्तविक अर्थ मृत्यु का स्थान है और इसी कारण से इस शब्द का रेगिस्थान के लिये उपयोग किया जाता है। मारवाड़ की कुल जन-संख्या (आबादी ) सन् १९३१ की मनुष्य-नगणना के अनुसार २१२६४२९ है । जिसमें जैनियों की संख्या १,१३,६६९ है। मारवाड़-प्रदेश पर राज्य करने वाले प्रसिद्ध कन्नोजपति राठौड़ राजपूत जयचन्द के वंशधर हैं । सन् १९९४ में शहाबद्दीन गौरी से परास्त होने पर जयचंद भागते हुये गंगा में डूब गया। इसी का पौत्र सीहाजीराव सन् १२१२ में राजपूताने में आकर बसा और मारवाड़ राज्य की नींव डाली, तभी से उसके वंशधर इस प्रदेश पर राज्य करते आरहे हैं। मारवाड़ में अनेक रमणीय स्थान देखने योग्य हैं, किन्तु स्थानाभाव के कारण "राजपूताने के प्राचीन जिन स्मारक" से (जो कि सरकारी गजेटियरों और रिपोटों से अनुदित किया गया है ) केवल कुछ प्राचीन जैन-मन्दिरों का विवरण दिया जाता है:१. भिनमाल: जिला जसवन्तपरा, इस को श्रीमाल या भिल्लमाल भी कहते हैं। यह आबूरोड स्टेशन से उत्तर पश्चिम ५० मील व जोधपरसे दक्षिण पश्चिम १०५ मील है, यह छठी से नवीं शताब्दी के मध्य में गूजरों की प्राचीन राज्यधानी थी | A.S. R.W.I. of 1908 से विदित हुआ कि यह श्रीमाल जैनियों का प्राचीन स्थान है। ne * मारवाड़ राज्य का शति० पृ. ३ ।
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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