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________________ मेवाड़ के वीर असिस्टेंट (नायब) के पद पर नियत था, योग्य देखकर सेक्रेटरी बनाया। कुछ समय पश्चात् प्रधान का काम भी महकमा खास के सेक्रेटरी के सुपुर्द हो गया और प्रधान का पद उठ गया । जब महाराणा को कितने एक स्वार्थी लोगों ने यह सलाह दी, कि बड़े बड़े अहलकारों से १०-१५ लाख रुपये इकट्ठे कर लेने चाहिये, तब महाराणा ने उनके बहकाये में आकर, कोठारी केसरीसिंह, छगनलाल तथा मेहता पन्नालाल आदि से रुपया लेना चाहा । पन्नालाल से १२०००० रु० का रुका लिखवा लिया, परन्तु श्यामलदास (कविराजा) क्या पोलिटिकिल एजेण्ट कर्नल निक्सन के कहने से उनके बहुत से रुपये छोड़ दिये । और पन्नालाल से सिर्फ ४०००० रु० वसल किये। मेहता पन्नालाल ने अपनी प्रबन्ध कुशलता के परिश्रम और योग्यता से राज्य प्रवन्ध की नींव दृढ़ करदी और खानगी में वह महाराणा को हरएक बात का हानि लाम बताया करता था, 'इसलिये बहुत से रियासती लोग उसके शत्रु हो गये। उसे हानि पहुँचाने के लिये उन्होंने महाराणा से शिकायत की, कि वह खूब रिश्वत लेता है और उसने आप पर जाद कराया है। महाराणा वीमार तो था ही, इतने में जादू करानेकी शिकायत होने पर मेहता पन्नालाल वि०सं०१९३१ भाद्रपद वदि १४ (ई० स० १८७४ ता० ९ सितम्बर) को कर्णविलास में कैद किया गया, परन्तु तहकीकात होने पर दोनों वातों में वह निर्दोष सिद्ध हुआ, तो भी उसके इतने दुश्मन हो गये थे, कि महाराणाकी दाह-क्रियाके समय उसके प्राण लेने की कोशिश
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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