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________________ १०८ राजपूताने के जैन-वीर ऐसे घृणित कार्य न करने के लिये पत्र लिखा । किन्तु व्यर्थ ? जिस प्रकार शुद्ध शान्त समीर से आग भड़क उठती है, उसी प्रकार राणा के पत्र से औरंगजेव का क्रोधानल और भी बढ़ गया । उस ने अपनी असंख्य सेना लेकर मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया । श्री० श्रोमानी लिखते हैं : , "औरंगजेब बादशाह ने हि० स० १०९० ता० ७ शाबान ( वि० सं० १७३६ भाद्रपद सुदी ८ ई० स० १६७९ ता०३, सितम्बर) : को महाराणा से लड़ने के लिये बड़ी सेना के साथ दिल्ली से अजंमेर की ओर प्रस्थान किया । महाराणा ने बादशाह के दिल्ली से मेवाड़ पर चढ़ने की खबर पाते ही अपने कुँवरों, सरदारों यादि को दरवार में बुलाकर सलाह की, कि बादशाह से कहाँ और किस प्रकार लड़ना चाहिये ।" उस समय मंत्री दयालदास भी उपस्थित थे । • -यह युद्ध कैसा भयंकर हुआ ? राजपूत वीर कैसे खुल कर खेले ? और औरंगजेब को कैसी गहरी हार खानी पड़ी, इस का रोमांचकारी वर्णन मान्य टॉड साहव ने बड़े ही मर्मस्पर्शी शब्दों में किया है । जब महाराणा पर्वतों में जाकर मुग़लसेना पर आक्रमरण कर रहे थे, तब मंत्री दयालदास भी उनके कन्धे चकन्धे साथ था । रणस्थल में हिन्दुधर्म-द्रोही औरंगजेव को पराजित करके.. भी हिन्दुओं के प्रति किये गये उसके राक्षसी अत्याचार दयालदास के नेत्रों के सामने नाचने लगे । उसके समस्त शरीर में एक प्रकार .... J + राजपुताने का इ० ती० [सं० पृ० ८६५-६६ । ·
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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